"अंकित तुम इतनी सुबह सुबह कहा साईकल पर" कुछ शायद यही शब्द थे उस सुबह मेरे। । हाँ तो बात ज्यादा पुरानी नही है बस मेरे 11 क्लास की ही है । माँ की हज़ार कोशिशो अरे नही लाखों कोशिशो ओर पापा के गुस्से के बाद में सुबह सुबह दौड़ने निकला बस शहर के चौरहै तक पहुँज कर खुद को आराम दिया ही था। तभी सामने एक चेहरा आता दिखा मेरा मोहल्ले का ओर मेरे पिछले स्कूल का दोस्त अंकित साईकल पर इतनी सुबह सुबह कहाँ? "कुछ नही भाई बस कंपनी से अखबार लेने जा रहा हूँ अभी घर घर डालने भी निकलना है।।" "क्या क्या में कुछ समझा नही तुम अखबार डालते हो लेकिन क्यों?" मेने पूछा " बाद में बात करते भाई लेट हो रहा हूँ" इतना बोल के वो निकल गया।। दिन भर स्कूल मे, ट्यूशन में परेशान रहा शाम को घर पहुँजते ही सीधे उसके घर गया। हाँ पैसो से थोड़ा कमजोर था किराये से रहता था पापा की शायद एक दुकान थी। माँ थोड़ा बहुत मेहनत करके उसको ओर छोटे भाई को पढ़ाती थी। अरे एक बात बताना भूल गया he is master of art brush . रंगों से कैसे खेलना है उसे बहुत अच्छे से आता है। लाइव पेंटिंग में तो मास्टर है। ओर मे...
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