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Showing posts from January, 2019

POETRY- वो आखरी साँस जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ...

वो आखरी साँस जीना चाहता हूँ           तुम्हारे साथ... वो सुबह हमारी पहली मुलाकात ख्वाहिश हुई दिल मे जी लूँ जिंदगी का हर लम्हा तुम्हारे साथ... पर वो शाम के आखरी सुकून वाली मुलाकात एहसास हुआ की बस वो आखरी साँस वाली मुलाकात जीना है तेरे साथ।। हाँ मुश्किल हो गया है तुम्हारा मुझसे मिलना इस ज़माने की बातों के कारण.. लेकिन एक आखरी बार साथ चाहता हूँ जमाने की परवाह किये बिना वो मेरी आखरी साँस पर।। एक अरसा हो गया तुम्हें सुकून से देखा नहीं... लेकिन बस तुम्हें देखना चाहता हूँ वो मेरी आखरी साँस पर।। हाँ समझता हूँ तुम्हारी परेशानी बात न कर पाने की जान... लेकिन सुनना चाहता हूँ वो तुम्हारी मीठी आवाज में थैंक यू मेरे ई लव यू के बाद बस मेरी वो आखरी साँस पर।। क्योकि आज तुम साथ हो ना हो...  लेकिन तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ वो मेरी आखरी साँस।।     तुम्हारे साथ... FOLLOW ME INSTAGRAM: Storyteller shivam FACEBOOK: Storytellershivam

KAHANI - LOVE IN TRAIN-1 (मोहब्बत का सफर)

" भाई कहाँ की तैयारी आज इतनी जल्दी क्यों निकल रहा है घर ?" किसी ने प्रतीक के केबिन का दरवाजा खोलते हुए पूछा, प्रतीक फाइलो को अलमारी में लॉक करते हुए पलटा देखा दरवाजे पर ऋषभ खड़ा था। ऋषभ ने फिर इशारे से पूछा- कहाँ ?  प्रतीक जल्दी- जल्दी अपने काम में व्यस्त होते हुए बोला "बाजार जाना है तू भूल गया कल ट्रेन है, मेरी निकलना है, तू भी बाजार चल शॉपिंग करनी है ।"   "Ok wait 10 min, you just lock your cabin i am coming" ऋषभ बोलते हुआ चला गया।  ऋषभ और प्रतीक एक ही ऑफिस में  साथ काम करते और flatemate और कॉलेज टाइम से पक्के यार है । प्रतीक को कल दार्जलिंग जाना है घूमने तो उसी के लिए शॉपिंग करनी है। दोनों ऑफिस के काम खत्म करके  शॉपिंग के लिये निकल जाते है । दोनों शॉपिंग खत्म करके लोट रहे थे तभी रस्ते में ऋषभ प्रतीक की तरफ गुस्से से देखता है, प्रतीक अनजान बनते हुए बोलता है "क्या? मेने क्या किया यार अब  यार उसको एक्स्ट्रा पैसे क्यों दू जब उसका रेट कम है।"  "कमीने इतना पैसा कहाँ ले जायेगा तेरे पापा इतने बड़े आदमी फिर भी तू इतना मोलभाव करता है, क्या हो जायेगा,

POETRY- कुछ तुम्हारे दिल से...

 ये एक लड़की की feelings लिखने की कोशिश की है  जब वो किसी से सच्ची मोहब्बत करती है।।                  कुछ तुम्हारे दिल से...              वो सुबह यू मिलना तुम्हारा...               शायद वो जिद थी तुम्हारी                  लेकिन दिल हमारा।। मोहब्बत तो तुमसे पहले ही थी आज भी है तुमसे।                        मोहब्बत… लेकिन उम्मीद ना थी कि तोड़ दोगे वो just friend का प्रोमिश  ओर हो जाएगी तुमको भी मोहब्बत।।             एक बात जो तुम जानते हो जीना तो में भी चाहती हूँ तेरे साथ ये बेबाक                      मोहब्बत… लेकिन उनका क्या अंश हूँ में जिनका कैसे कर दु             बेवफा उनकी मोहब्बत।। एक बात जो सिर्फ तुम समझते हो कहनी है तुमसे वादा करो ना तुमसे न उनसे न होने दोगे बेवफा ये                      मोहब्बत… तो वादा है तुमसे तेरी आखरी साँस तक तेरी              रहेगी ये बेबाक  मोहब्बत ।।                                   बस तेरी...                    FOLLOW ME INSTAGRAM: Storyteller shivam FACEBOOK: Storytellershivam

KAHANI- मूंगफली ( struggle of life )

"चलो चलो 10 मिनट का स्टॉप है जिसको जो करना है या खाना हो खा ले,  बस कान्हापुर गाँव जा कर ही रुकेगी।" कंडक्टर चिल्लाते हुए नीचे उतर गया ।  प्रतीक उसकी बात अनसुनी कर आँख बंद किये बैठा रहा। शायद इतने सालों बाद वापस घर जा रहा था तो ये सफर जल्द से जल्द खत्म करने का इंताजर था और घर बस 2-3 घण्टे ही दूर था।  लेकिन तभी खिड़की से आती एक आवाज ने प्रतीक की आजनक आँख खोल दी ।   "मूंगफली ले लो दस रुपये पैकेट गरम है गरम ले लो " उस बच्चे के मुँह से आवाज सुनते ही प्रतीक अपने  अतीत में चला गया। " प्रतीक उठो बस आने वाली है मूंगफली नही बेचना जल्दी करो" ढाबे वाले चाचा उसे उठाते हुए बोलते है ।    "अरे हाँ चाचा वो ज़रा आँख लग गयी थी आज सोया नही हूँ स्कूल में आज गणित का पेपर था तो रात को पढ़ाई की थी।"  चाचा प्रतीक के सर पर हाथ फेरते हुए बोले "शाबाश ऐसे ही पढों एक दिन तुम जरूर सच्चाई और मेहनत का प्रतीक बनोगे।"  प्रतीक मुस्करा दिया तभी सड़क से बस उतरते हुए ढाबे की तरफ आ गयी और जैसे ही रुकी प्रतीक तुरन्त अपना मूंगफली के पैकेट ले कर बस की तरफ मूंगफली ले लो गरम गर

KAHANI - Kya tha vo...? (not a love story but a story)

यूँ तुम्हारा घण्टो फ़ोन पर फालतू बाते करना और में जो रूठ भी जाऊ तो तुम्हारा छट से मना लेना क्या था वो सब महज दिखवा था या बस समय की ज़रूरत।  ये सोच ही रही थी सान्या तभी अदितीं उसके पास आके उसे सपने से निकलते हुई बोली " चलना नही यार क्या सोच रही हो ?"   बाहर चलते हुए सान्या बार बार अपने फोन को देखती कही कोई कॉल या मैसेज तो नही आया।  फिर परेशान देख अदितीं बोली "यार कहाँ खो जाती हो तुम जल्दी चल बहुत ख़रीददारी करनी है कल से कॉलेज भी जाना है और 8 बजे हॉस्टल की एंट्री भी बंद हो जायेगी।"  "कही नही बस हर बार जब भी बिन बताये कही जाती थी तो पता नही कैसे फ़ोन आ जाता था लेकिन आज..." उदास मन से इतना बोलते ही सान्या रुक गयी।     रात को जब सारी खरीददरी करके वापस आये तो ज्यादा थकन के कारण दोनों बिना कुछ खाये सो गई । आजनक भूख लगी तो दोनों उठी और सान्या मैग्गी बनाने लगी जिसकी हर इंजीनियर की अपनी कॉलेज लाइफ में सबसे ज्यादा ज़रूरत होती अगर ये मैग्गी ना होती तो ना जाने कितने इंजीनियर भूख के कारण परलोक सिधार गये होते। सान्या मैगी की प्लेट अदितीं को पकड़ते हुए खुद खिड़की के पास बैठ क

KAHANI- पहली मुलाकात (एक एहसास तुम्हारा)

Semster holidays बस ख़त्म होने ही वाली थी और उससे बाते कभी पूरी ना होती थी। ना जाने क्यों इस बार घर से हॉस्टल आने पर बुरा नही लग रहा था, ना मन उदास था शायद उससे मिलने के लिए उसे मनाने की कोशिश में वो मान गयी थी। और हम कही और खो गए थे कैसी होगी हमारी पहली मुलाकात क्या खास होगा हमारे साथ ? वो एक शाम जब हम message पर बातो में लगे थे। mobile पर चलते वो तेज़ हाथ बता रहे थे की कितना इंताजर है हमको उनके आने वाले reply का। Me : तो क्या सोचा है तुमने या फिर आज भी ना ही सुनने को मिलेगा हमको ?? She : यार तुम भी!! पहले आ तो जाओ  यहाँ घर से फिर सोचोगी। Me : अभी भी सोचना है तुमको !! हद हो गयी वैसे एक बात बोलू ? She : हाँ जरूर बोलो वैसे भी में मना भी करुँगी तो तुम बोलोगे इतना हक़ तो तुम पर हे ही तो बोल ही लो। Me :कुछ भी ना बोला करो यार वैसे तुम पहली लड़की हो जिसने अपनी pic देने की जगह अपना no. दिया है। very unique. She : i don't like click pics, that's why i don't give. और नंबर दिया तो कम से कम तुम्हारी इतनी प्यारी आवाज तो सुनने को मिल गयी। Me : फिर फालतू बाते की तुमने यार। She : अच्

KAHANI- LOVE...? (क्या सच में )

"उफ़ ये पढ़ाई चलो ये 10 board exam खत्म हुए अब तो मस्ती होगी दोस्तों के साथ खूब बाते करुँगी facebook पर अकाउंट बना के अब"  यही सोचा था उस आखरी एग्जाम देने के बाद लेकिन क्या पता था में भी इन फालतू के चक्कर में फँस जाऊँगी। अरे हाँ में हूँ समीक्षा अभी 10 के एग्जाम दिए है। मेरी जिंदगी की कहानी का एक हिस्सा... कितना मस्त था यार टाइम लम्बी सहेलियों से बाते और रिजल्ट की टेंशन लेकिन सभी दोस्तों को पता था 10 cgpa मेरे आएंगे और आये भी। तो अब बात आते है। रिजल्ट के कुछ  दिनो बाद एक लड़के का मैसेज आया हाँ जानती थी अनुज नाम था लेकिन इतनी अच्छी दोस्ती ना थी। पहले तो normal बाते हुई लेकिन एक दिन बाते उसकी अलग थी। अनुज  : हेल्लो क्या कर रही हो ? Me : कुछ नही बस फ्री बैठी हूँ। अनुज : तुमसे एक बात बोलनी है। Me : हाँ बोलो। अनुज : i like you मेरी gf बनोगी? Me : अरे क्या पागल हो क्या..?? (देखने में क्यूट तो था attract तो थोड़ी में भी थी लेकिन इतनी जल्दी नही हो सकता ये।) अनुज : हाँ तुम बहुत प्यारी लगती हो हमको i love u😘. Me :अरे ऐसा मत बोलो यार में इन सब बातों  कभी नही पड़ी हूँ यार। कुछ

KAHANI- Artist of life (true story)

  "अंकित तुम इतनी सुबह सुबह कहा साईकल पर" कुछ शायद यही शब्द थे उस सुबह मेरे। । हाँ तो बात ज्यादा पुरानी नही है बस मेरे 11 क्लास की ही है । माँ की हज़ार कोशिशो अरे नही लाखों कोशिशो ओर पापा के गुस्से के बाद  में सुबह सुबह दौड़ने निकला बस शहर के चौरहै तक पहुँज कर खुद को आराम दिया ही था। तभी सामने एक चेहरा आता दिखा मेरा मोहल्ले का ओर मेरे पिछले स्कूल का दोस्त अंकित साईकल पर इतनी सुबह सुबह कहाँ? "कुछ नही भाई बस कंपनी से अखबार लेने जा रहा हूँ अभी घर घर डालने भी निकलना है।।" "क्या क्या में कुछ समझा नही तुम अखबार डालते हो लेकिन क्यों?" मेने पूछा " बाद में बात करते भाई लेट हो रहा हूँ"  इतना बोल के वो निकल गया।। दिन भर स्कूल मे, ट्यूशन में परेशान रहा शाम को घर पहुँजते ही सीधे उसके घर गया। हाँ पैसो से थोड़ा कमजोर था किराये से रहता था पापा की शायद एक दुकान थी। माँ थोड़ा बहुत मेहनत करके उसको ओर छोटे भाई को पढ़ाती थी। अरे एक बात बताना भूल गया  he is master of art  brush . रंगों से कैसे खेलना है उसे बहुत अच्छे से आता है। लाइव पेंटिंग में तो मास्टर है। ओर मे

A LETTER- एक खत... (कहानी खत की)

                     "कहानी आज की है बस अंदाज जरा पुराना हैं।।" "जिंदिगी "आज रेलवे प्लेटफॉर्म पर रेलगाड़ी के इंतज़ार में समझ आया ये  रेलगाड़ी  मंजिल  पहुँजने तक न जाने कितने पड़ाव पर रुकती है और हर पड़ाव पर नए नए मुसाफिर मिलते है। ऐसे ही मेरे  जिंदगी के एक पड़ाव पर वो मिली थी मुझको। कुछ खास हमसफ़र सी थी, वो जो अक्सर जिंदिगी की ओर रेलगाड़ी की आखरी मंजिल तक साथ रहते  है । एक खत उसी एक  हमसफर के नाम... Dear little heart तुम्हारी ये दूरियां रास न आती है मुझको इसलिए आज फिर उन रास्तो पर निकला हूँ जिन रास्तों पर हम पहली बार मिले थे और हाँ आज हम फिर से सफेद शर्ट में थे। उस दिन तुम्हारा जन्मदिन था और तुमने  बतया भी ना था, पता है बिना तोहफे के पहुँजना कितना अजीब लगता है बाद में कितना बुरा लगा था हमको। जाने दो आगे सुनो आज ना जाने क्यों उस रास्ते के हर कदम पर ऐसा लगा तुम मेरे कदम से कदम मिला कर चल रही हो। उस रास्ते से वापस  आज भी अकेले आने कि हिम्मत बड़ी मुश्किल से हुई डर था शायद तुम न साथ हो। वो यूँ ही बेवजह तुम्हरा कोचिंग ओर मेरा कॉलेज bunk मार के घंटो सड़को पर घूमना। 

KAHANI - जंग...(true story)

To read 1st part - आँसुओ का कारगिल                                           लेकिन आज लाइब्रेरी में बैठ कुछ पुराने अखबारों को पलटा तो समझ पाये क्यों वो इतने खामोश थे। क्यों वो जंग के चार साल बाद ही वो सेवा छोड़ कर आ गए थे। वो उनका एक बक्सा जिसमे उनकी वो यादे और जीते मैडल मिलते, जिसे वो बस दिवाली की सफाई पर निकलते और साफ करके वापस रख देते थे। एक रोज जब उनसे पूछा क्यों इनको सबको दिखाने की जगह इस बक्से में कैद करके रखे थे हो? पापा बोले ये जितना मुझे गर्व देते उतना ही दर्द भी देते है, इसीलिए इनको कैद करके रखता हूँ। उस रोज पापा ना जाने क्यों  मुझको उस जंग की कहानी सुनाने को तैयार थे और में उतना ही सुनने को उत्सुक था। आगे की कहानी पापा की जुबानी बेटा उस दिन जंग ऐलान हो चूका था। हम उन सालो को उनकी औकात दिखने की तैयारी में लगे थे और साथ में बाते भी कर रहे थे की जीतने के बाद जश्न कैसे मनाएंगे तभी मेरा दोस्त अपने बटुए से अपनी माँ और पत्नी की तस्वीर निकल कर बोल माँ इस बार दिवाली तेरे और तेरी बहु के साथ मनाऊंगा और हँसने लगा।  तनाव और जूनून लकीरों के दोनों तरफ था, अखबारों में हिन्दुस्तान और पा

KAHANI - आँसुओ का कारगिल (true story)

                                                             बचपन कि यादे अक्सर भूल जाते है, लेकिन कुछ यादे अक्सर जहन में उतर जाती है।। वैसी ही वो एक शाम आज भी याद है, माँ रो रही थी पापा वर्दी पहने दरवाजे पर खड़े थे।  अरे अभी कुछ ही दिन तो हुए थे उनको आये और वो उनकी बटालियन का खत ओर वो जा रहे थे। कुछ समझ  नही  रहा था माँ को देख में भी रोने लगा।  हाँ पापा आंखों से दूर जा रहे थे । उस दिन से माँ अक्सर मंदिर में मिलती तो कभी रेडियो सुनती, बस अपने सुहाग की रक्षा करती मिलती तो कभी शहीदो पर रोती। हाँ कारगिल तो दो हो रहे थे एक वो इंसानो का जो लकीरे बना रहा था, एक माँ और भगवान का जो लकीरो में हो कर भी लकीरे मिटा रहा था। अब ना कोई खत आया न पत्र बस माँ की उम्मीद में उनकी सुहाग की दुआ में फिर वो शाम आई, पापा खड़े थे दरवाजे पर ओर माँ फिर रो रही थी । हाँ लेकिन पापा ना मुस्करा रहे थे ना रो रहे थे बस खामोश हम सबको देख बार बार गले लगा रहे थे। ना समझ पाए उनकी खामोशी का राज जहाँ पूरा देश, घर खुश था वहाँ पापा खामोश थे। लेकिन आज लाइब्रेरी में बैठ कुछ पुराने अखबारों को पलटा तो समझ