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The evening...^2 (Known or unknown love story?)


 
To read 1st part-
The evening-1
               
     The evening...^2
 (Known or unknown love story?) 


उफ्फ ये सफर...हर बार कुछ न कुछ याद दिलाता रहता है।
प्रतीक ट्रैन से अपने बचपन और माँ के शहर से वापस आ रहा था।
और हर पल बढ़ती ट्रैन की रफ्तार के साथ और वो पीछे छूटते शहर के साथ वो बचपन की धुंधली यादे ताज़ा हो रही थी।
तो चले फिर से फ़्लैश बैक में boooommm....
" मम्मी में जाऊ खेलने सामने वाले पार्क में ।" मेने माँ से ज़िद करते हुए बोला।
"नहीं अभी नहीं पहले ये दूध खत्म करो तभी जाने देंगे।" माँ ने प्यार से बोला।
में फटाफट दूध खत्म करके सामने वाले पार्क में  खेलने के लिए पहुँचा।
यही जगह थी हमारी हर शाम की हम दोस्तो की में , नितिन , करिश्मा , अरमान और निषी रोज यही खेलते मस्ती करते और दिन ढलने से पहले अपने अपने घर चले जाते थे।
लेकिन वो दिन कभी नही भूलने वाला स्कूल का उस साल का आखिरी दिन था ।
स्कूल वेन से हम सब बच्चे लौट रहे थे , उस दिन अपने दोस्त से ज़िद करके आगे  बैठा था।
इतना याद है वो सड़क पर  सामने से आता तेज रफ्तार में बहकता ट्रक और एकदम से धड़ाम उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है।
जब होश आया तो हॉस्पिटल में था माँ सामने बैठी थी।
मेरे राइट हाथ मे  फ्रैक्चर और सर पर बहुत चोट आयी थी। उस एक्सीडेंट में हम बच्चे तो बच गए थे ड्राइवर अंकल की समझदारी से लेकिन वो अपनी परवाह करना भूल गए और हम सब को छोड़ कर चले गए।
जितने दिन अस्पताल में रहा एक चीज हर रोज होती थी, निषी रोज शाम को मेरे लिए फूल लेकर आती और बगल में रख देती थी , यही बिल्कुल रहा जब में अस्पताल से घर आ गया कभी दोस्तो के साथ आती तो कभी अकेले ही पास में ही घर जो था लेकिन आती जरूर हम रोज कभी लूडो कभी कैरम खेलते थे।
3 महीने लग गए मेरे हाथ को सही होने में ओर ठीक होने के बाद शाम को खेलने पार्क में पहुँचा तो निषी नही आयी और याद है उसके बाद वो कभी नहीं मिली।
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स्कूल शुरू हुए सोचा स्कूल में मिलेगी लेकिन उसने स्कूल भी छोड़ दिया था । एक शाम दोस्तो के साथ उस घर गया तो वहाँ कोई और रहने लगा था । चली गयी थी वो शहर छोड़ कर फिर कभी नही मिली । और हमने भी ज्यादा ध्यान नही दिया कभी ओर बाकी दोस्तो में लग गये।
तभी एक अजनबी ने प्रतीक को हिलाते हुए जगाया "भाईसाहब लॉस्ट स्टॉप है ट्रैन का उतरना नहीं नही क्या ? कहाँ जाना था आपको कहीं आगे तो नहीं आ गए?"
प्रतीक बोला "धन्यवाद हमको भी यही उतरना था वो थके थे तो नींद लग गयी बस।"
प्रतीक ने रेलवे स्टेशन से निकल ऋषभ  को फ़ोन मिला कर उसे अपने फ्लैट पर मिलने को कहता है।
दोनों प्रतीक के फ्लैट पर मिलते है
"प्रतीक बाकी सब बाद में पहले मुझे तेरी ओर निषी की बैक स्टोरी बता।" ऋषभ प्रतीक से पूछता है।
प्रतीक पूरी कहानी ऋषभ सुनता है। फिर दोनों प्लान बनाते है कैसे निषी को ढूंढना है।
ऋषभ "प्रतीक तूने बताया था वो किसी कंपनी के लिए ancient structures के बारे रिसर्च करती है।"
"हाँ लेकिन मुझे कंपनी नही पता है।" प्रतीक बताता है।
"साले तुझे पता भी क्या है ,तो वो कंपनी की तरफ से ही यहाँ आयी थी ना तो उसी को कंपनी में पता करते है। " ऋषभ सुझाव देता है।
"लेकिन कंपनी कैसे पता करे?" प्रतीक पूछता है।
"यार तुम भी ले गूगल पर सिर्फ एक ही कंपनी दिखा रहा उसके काम से जुड़ी इस शहर में पक्का इसी में काम करती होगी, कल ऑफिस के बाद चलते है,मेरे पास एक आईडिया है।" ऋषभ प्रतीक को बताता है।
अगले दिन दोनों ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकल कर उस कंपनी के ऑफिस के लिए निकलते है।
ऋषभ बाहर इंतज़ार करता है।
प्रतीक अंदर रिसेप्शन पर जा कर पूछता है "हेलो मेम में architecture compny से हूँ, आपके यहाँ  कोई निषी सिंह नाम की लड़की काम करती है, क्या actually उन्होंने मुझे एक घर का डिज़ाइन बनाने को दिया था तो वो ही देना है उन्होंने यहाँ का पता दिया था। "
रिसेप्शन पर बैठी लड़की बोलती है "एक मिनट सर में चेक करती हूँ , हाँ सर निषी सिंह यही काम करती है लेकिन किसी प्रोजेक्ट से दूसरे शहर शिफ्ट हो गयी है,

क्योंकि इस शहर का प्रोजेक्ट खत्म हो चुका था।"
"तो आप उनका नंबर दे सकती हो थोड़ा जरूरी क्योंकि ये उनको जल्दी देना था लेकिन में लेट हो चुका हूँ। " प्रतीक ने लड़की से रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"सॉरी सर लेकिन किसी की पर्सनल डिटेल देना हमारी पॉलिसी में नहीं है।" लड़की समझाती है।
"मेंम आप समझ नहीं रही उन्होंने इसकी पेमेंट। कर दी है। ये देना उनको जरूरी वरना हमारी कम्पनी का नाम खराब हो जाएगा, प्लीज आपसे विनती करते है।" प्रतीक उसको समझता है।
लड़की की कुछ सोच कर बोलती है "सॉरी सर पर्सनल डिटेल तो नही दे सकते है, लेकिन आपको उनकी  साइट का पता देती हूँ  जहाँ वो एक ancient किले के restoration में लगी है।"
प्रतीक खुश होते हुए कहता है "धन्यवाद मेम आपका बहुत।"
"लेकिन सर एक प्रोबलम है।"
"क्या??"
"4:30 हो चुका है और 6 बजे साइट बन्द हो जाती है आप कल जाइये आपको मिल जाएगी।"' लड़की कहती है।
प्रतीक सारी detail लेकर बाहर आता है और ऋषभ उससे पूछता है , तो उसको सारी कहानी बता कर प्रतीक कहता है "ये जगह यहाँ से 60 km हम लोग अगर अभी कार से निकले तो 45 मिनट में पहुँच सकते है।"
ऋषभ "भाई कल चलते है आराम से क्यों अभी रिस्क लेना।"
प्रतीक गुस्से में "तू चल रहा है या नहीं में अभी निकलूँगा बता।"
ऋषभ मुँह बनाते हुए "ठीक है चलो अब अगर नही मिली फिर बताता हूँ।"
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दोनों कार से निकल जाते प्रतीक खुशी का ठिकाना नहीं है , जल्दी पहुँचने के लिए जितना हो सकता उतनी तेज़ कार चलता है।
कम होती दूरी के साथ उसके दिमाग मे हर पल हर किस्सा उसके साथ बिताया याद आता रहता है। तभी प्रतीक को कुछ दिखता है वो कार रोक कर सामने सड़क के किनारे बैठी बूढ़ी अम्मा से कुछ फूल खरीदता है।

ऋषभ ये देख बोलता है "अब लेट नहीं हो रहा है।"
प्रतीक उसे बताता है "तुझे बताया था ना हम ज्यादातर शाम को ही मिलते थे देख आज भी शाम हो चुकी है और वो मेरे लिए फूल ले कर आती थी , आज फूल मेने ले लिए है।"
5:30 बजने में अभी 5 मिनट है दोनों किले के अंदर पहुँचते है और चोकीदार से पता कर के restoration टीम के पास जाते है।
इधर निषी सारे काम को खत्म कर ओर साइट क्लोज करवाने में लगी थी ।
प्रतीक तभी चिल्लाता है "निषी......"
निषी पलट कर प्रतीक को देख कर चौक जाती है और पूछती है "तुम प्रतीक यहाँ कैसे??"
प्रतीक मुस्कराते हुए बोलता है "निषी सिंह 3rd क्लास स्कूल mvm हमेशा एक ही बेंच पर बैठते थे, कुछ याद आया , नही तो ये देखो।"
प्रतीक अपने साथ लायी हुई वो स्कूल की फ़ोटो दिखता है।
निषी चौकते हुए बोलती है "तुम वो प्रतीक हो क्या ?? तुमको कैसे भूल सकती यार कैसे हो और मुझको ढूंढ़ा कैसे??"
प्रतीक उसको सब कुछ बताता है "तुमसे जब पहली बार फ्लैट में मिला तो कंफ्यूज हो गया, फिर पता किया स्कूल जा कर तब जा कर सब साफ हुआ कि मेरी बचपन की दोस्त और ये निषी एक ही ओर कैसे नही मिलता तुमसे ऐसी कोई शाम नही थी जब मेरा एक्सीडेंट हुआ कि तुम आयी न हो।"
निषी खुश हो जाती है। और प्रतीक फिर पूछता है  "तुम हर बार बिना बताए क्यों चली जाती हो? हर बार शाम को तुम छोड़ कर चली जाती हो तो सोचा इस बार शाम को हम मिल ही जाते है , और देखो फूल इस बार में लाया हूँ।"
निषी फूल लेकर कहती है "फ्लैट खाली करते टाइम तुम नहीं थे , वॉचमैन से पूछा उसको भी कुछ पता नहीं था।
और बचपन मे उस एक्सीडेंट के बाद सब बदल गया मेरी जिंदगी में उसमे हम सब तो बच गए लेकिन मेने अपने पापा को खो दिया था।"
प्रतीक चौकते हुए कहता है "मतलब में कुछ समझा नही।"
निषी "वो ड्राइवर अंकल याद है ना वो मेरे पापा थे उनके जाने के बाद माँ बताती है कि पैसे की तंगी आ कर हमको वो शहर छोड़ना पड़ा, और ये में किसी को बताना नहीं चाहती थी।"
प्रतीक का दिमाग घूम जाता है "क्या!! वो तुम्हारे पापा थे उन्होंने मुझे बचाने के चक्कर मे खुद को खो दिया।"
प्रतीक घुटनो पर बैठ जाता है i am sorry  निषी अगर उस दिन में आगे नहीं बैठता तो शायद वो होते आज।
निषी उसको उठा कर बोलती है "नहीं होते क्योंकि तुम नही होते तो कोई ओर होता उस सीट पर पापा ने तो बस अपना फर्ज निभाया था।"
निषी प्रतीक के आँसू पोछती है "पागल हो गया देखो हम मिल गए ना शायद मेरे पापा की परछाई मिल गयी मुझे सब भूल जाओ हम बहुत आगे आ चुके है।" निषी उसको सबके सामने गले लगा लेती है।
बगल में उस शाम को ढलते सूरज में अब दोनों एक दूसरो को बाहों समेट लेते है।
इधर ऋषभ उनके इस पल को फोन निकाल कर तस्वीर में कैद कर लेता है और सब लोग वहाँ ताली बजाते है।
लेकिन निषी और प्रतीक अभी भी एक दुसरो की बाहों में है, शायद वो अपने हर गम ओर दूरी को एक साथ भूल देना चाहते है।
सूरज पूरा ढल चुका है,लेकिन उसकी लालिमा अभी भी आसमान में और उस शाम को और खूबशूरत बना रही है।
  ...the beginning of love story...

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