Skip to main content

The evening...^2 (Known or unknown love story?)


 
To read 1st part-
The evening-1
               
     The evening...^2
 (Known or unknown love story?) 


उफ्फ ये सफर...हर बार कुछ न कुछ याद दिलाता रहता है।
प्रतीक ट्रैन से अपने बचपन और माँ के शहर से वापस आ रहा था।
और हर पल बढ़ती ट्रैन की रफ्तार के साथ और वो पीछे छूटते शहर के साथ वो बचपन की धुंधली यादे ताज़ा हो रही थी।
तो चले फिर से फ़्लैश बैक में boooommm....
" मम्मी में जाऊ खेलने सामने वाले पार्क में ।" मेने माँ से ज़िद करते हुए बोला।
"नहीं अभी नहीं पहले ये दूध खत्म करो तभी जाने देंगे।" माँ ने प्यार से बोला।
में फटाफट दूध खत्म करके सामने वाले पार्क में  खेलने के लिए पहुँचा।
यही जगह थी हमारी हर शाम की हम दोस्तो की में , नितिन , करिश्मा , अरमान और निषी रोज यही खेलते मस्ती करते और दिन ढलने से पहले अपने अपने घर चले जाते थे।
लेकिन वो दिन कभी नही भूलने वाला स्कूल का उस साल का आखिरी दिन था ।
स्कूल वेन से हम सब बच्चे लौट रहे थे , उस दिन अपने दोस्त से ज़िद करके आगे  बैठा था।
इतना याद है वो सड़क पर  सामने से आता तेज रफ्तार में बहकता ट्रक और एकदम से धड़ाम उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है।
जब होश आया तो हॉस्पिटल में था माँ सामने बैठी थी।
मेरे राइट हाथ मे  फ्रैक्चर और सर पर बहुत चोट आयी थी। उस एक्सीडेंट में हम बच्चे तो बच गए थे ड्राइवर अंकल की समझदारी से लेकिन वो अपनी परवाह करना भूल गए और हम सब को छोड़ कर चले गए।
जितने दिन अस्पताल में रहा एक चीज हर रोज होती थी, निषी रोज शाम को मेरे लिए फूल लेकर आती और बगल में रख देती थी , यही बिल्कुल रहा जब में अस्पताल से घर आ गया कभी दोस्तो के साथ आती तो कभी अकेले ही पास में ही घर जो था लेकिन आती जरूर हम रोज कभी लूडो कभी कैरम खेलते थे।
3 महीने लग गए मेरे हाथ को सही होने में ओर ठीक होने के बाद शाम को खेलने पार्क में पहुँचा तो निषी नही आयी और याद है उसके बाद वो कभी नहीं मिली।
You are reading this tory on storyteller shivam.in

स्कूल शुरू हुए सोचा स्कूल में मिलेगी लेकिन उसने स्कूल भी छोड़ दिया था । एक शाम दोस्तो के साथ उस घर गया तो वहाँ कोई और रहने लगा था । चली गयी थी वो शहर छोड़ कर फिर कभी नही मिली । और हमने भी ज्यादा ध्यान नही दिया कभी ओर बाकी दोस्तो में लग गये।
तभी एक अजनबी ने प्रतीक को हिलाते हुए जगाया "भाईसाहब लॉस्ट स्टॉप है ट्रैन का उतरना नहीं नही क्या ? कहाँ जाना था आपको कहीं आगे तो नहीं आ गए?"
प्रतीक बोला "धन्यवाद हमको भी यही उतरना था वो थके थे तो नींद लग गयी बस।"
प्रतीक ने रेलवे स्टेशन से निकल ऋषभ  को फ़ोन मिला कर उसे अपने फ्लैट पर मिलने को कहता है।
दोनों प्रतीक के फ्लैट पर मिलते है
"प्रतीक बाकी सब बाद में पहले मुझे तेरी ओर निषी की बैक स्टोरी बता।" ऋषभ प्रतीक से पूछता है।
प्रतीक पूरी कहानी ऋषभ सुनता है। फिर दोनों प्लान बनाते है कैसे निषी को ढूंढना है।
ऋषभ "प्रतीक तूने बताया था वो किसी कंपनी के लिए ancient structures के बारे रिसर्च करती है।"
"हाँ लेकिन मुझे कंपनी नही पता है।" प्रतीक बताता है।
"साले तुझे पता भी क्या है ,तो वो कंपनी की तरफ से ही यहाँ आयी थी ना तो उसी को कंपनी में पता करते है। " ऋषभ सुझाव देता है।
"लेकिन कंपनी कैसे पता करे?" प्रतीक पूछता है।
"यार तुम भी ले गूगल पर सिर्फ एक ही कंपनी दिखा रहा उसके काम से जुड़ी इस शहर में पक्का इसी में काम करती होगी, कल ऑफिस के बाद चलते है,मेरे पास एक आईडिया है।" ऋषभ प्रतीक को बताता है।
अगले दिन दोनों ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकल कर उस कंपनी के ऑफिस के लिए निकलते है।
ऋषभ बाहर इंतज़ार करता है।
प्रतीक अंदर रिसेप्शन पर जा कर पूछता है "हेलो मेम में architecture compny से हूँ, आपके यहाँ  कोई निषी सिंह नाम की लड़की काम करती है, क्या actually उन्होंने मुझे एक घर का डिज़ाइन बनाने को दिया था तो वो ही देना है उन्होंने यहाँ का पता दिया था। "
रिसेप्शन पर बैठी लड़की बोलती है "एक मिनट सर में चेक करती हूँ , हाँ सर निषी सिंह यही काम करती है लेकिन किसी प्रोजेक्ट से दूसरे शहर शिफ्ट हो गयी है,

क्योंकि इस शहर का प्रोजेक्ट खत्म हो चुका था।"
"तो आप उनका नंबर दे सकती हो थोड़ा जरूरी क्योंकि ये उनको जल्दी देना था लेकिन में लेट हो चुका हूँ। " प्रतीक ने लड़की से रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"सॉरी सर लेकिन किसी की पर्सनल डिटेल देना हमारी पॉलिसी में नहीं है।" लड़की समझाती है।
"मेंम आप समझ नहीं रही उन्होंने इसकी पेमेंट। कर दी है। ये देना उनको जरूरी वरना हमारी कम्पनी का नाम खराब हो जाएगा, प्लीज आपसे विनती करते है।" प्रतीक उसको समझता है।
लड़की की कुछ सोच कर बोलती है "सॉरी सर पर्सनल डिटेल तो नही दे सकते है, लेकिन आपको उनकी  साइट का पता देती हूँ  जहाँ वो एक ancient किले के restoration में लगी है।"
प्रतीक खुश होते हुए कहता है "धन्यवाद मेम आपका बहुत।"
"लेकिन सर एक प्रोबलम है।"
"क्या??"
"4:30 हो चुका है और 6 बजे साइट बन्द हो जाती है आप कल जाइये आपको मिल जाएगी।"' लड़की कहती है।
प्रतीक सारी detail लेकर बाहर आता है और ऋषभ उससे पूछता है , तो उसको सारी कहानी बता कर प्रतीक कहता है "ये जगह यहाँ से 60 km हम लोग अगर अभी कार से निकले तो 45 मिनट में पहुँच सकते है।"
ऋषभ "भाई कल चलते है आराम से क्यों अभी रिस्क लेना।"
प्रतीक गुस्से में "तू चल रहा है या नहीं में अभी निकलूँगा बता।"
ऋषभ मुँह बनाते हुए "ठीक है चलो अब अगर नही मिली फिर बताता हूँ।"
You are reading this story on storyteller shivam.in
दोनों कार से निकल जाते प्रतीक खुशी का ठिकाना नहीं है , जल्दी पहुँचने के लिए जितना हो सकता उतनी तेज़ कार चलता है।
कम होती दूरी के साथ उसके दिमाग मे हर पल हर किस्सा उसके साथ बिताया याद आता रहता है। तभी प्रतीक को कुछ दिखता है वो कार रोक कर सामने सड़क के किनारे बैठी बूढ़ी अम्मा से कुछ फूल खरीदता है।

ऋषभ ये देख बोलता है "अब लेट नहीं हो रहा है।"
प्रतीक उसे बताता है "तुझे बताया था ना हम ज्यादातर शाम को ही मिलते थे देख आज भी शाम हो चुकी है और वो मेरे लिए फूल ले कर आती थी , आज फूल मेने ले लिए है।"
5:30 बजने में अभी 5 मिनट है दोनों किले के अंदर पहुँचते है और चोकीदार से पता कर के restoration टीम के पास जाते है।
इधर निषी सारे काम को खत्म कर ओर साइट क्लोज करवाने में लगी थी ।
प्रतीक तभी चिल्लाता है "निषी......"
निषी पलट कर प्रतीक को देख कर चौक जाती है और पूछती है "तुम प्रतीक यहाँ कैसे??"
प्रतीक मुस्कराते हुए बोलता है "निषी सिंह 3rd क्लास स्कूल mvm हमेशा एक ही बेंच पर बैठते थे, कुछ याद आया , नही तो ये देखो।"
प्रतीक अपने साथ लायी हुई वो स्कूल की फ़ोटो दिखता है।
निषी चौकते हुए बोलती है "तुम वो प्रतीक हो क्या ?? तुमको कैसे भूल सकती यार कैसे हो और मुझको ढूंढ़ा कैसे??"
प्रतीक उसको सब कुछ बताता है "तुमसे जब पहली बार फ्लैट में मिला तो कंफ्यूज हो गया, फिर पता किया स्कूल जा कर तब जा कर सब साफ हुआ कि मेरी बचपन की दोस्त और ये निषी एक ही ओर कैसे नही मिलता तुमसे ऐसी कोई शाम नही थी जब मेरा एक्सीडेंट हुआ कि तुम आयी न हो।"
निषी खुश हो जाती है। और प्रतीक फिर पूछता है  "तुम हर बार बिना बताए क्यों चली जाती हो? हर बार शाम को तुम छोड़ कर चली जाती हो तो सोचा इस बार शाम को हम मिल ही जाते है , और देखो फूल इस बार में लाया हूँ।"
निषी फूल लेकर कहती है "फ्लैट खाली करते टाइम तुम नहीं थे , वॉचमैन से पूछा उसको भी कुछ पता नहीं था।
और बचपन मे उस एक्सीडेंट के बाद सब बदल गया मेरी जिंदगी में उसमे हम सब तो बच गए लेकिन मेने अपने पापा को खो दिया था।"
प्रतीक चौकते हुए कहता है "मतलब में कुछ समझा नही।"
निषी "वो ड्राइवर अंकल याद है ना वो मेरे पापा थे उनके जाने के बाद माँ बताती है कि पैसे की तंगी आ कर हमको वो शहर छोड़ना पड़ा, और ये में किसी को बताना नहीं चाहती थी।"
प्रतीक का दिमाग घूम जाता है "क्या!! वो तुम्हारे पापा थे उन्होंने मुझे बचाने के चक्कर मे खुद को खो दिया।"
प्रतीक घुटनो पर बैठ जाता है i am sorry  निषी अगर उस दिन में आगे नहीं बैठता तो शायद वो होते आज।
निषी उसको उठा कर बोलती है "नहीं होते क्योंकि तुम नही होते तो कोई ओर होता उस सीट पर पापा ने तो बस अपना फर्ज निभाया था।"
निषी प्रतीक के आँसू पोछती है "पागल हो गया देखो हम मिल गए ना शायद मेरे पापा की परछाई मिल गयी मुझे सब भूल जाओ हम बहुत आगे आ चुके है।" निषी उसको सबके सामने गले लगा लेती है।
बगल में उस शाम को ढलते सूरज में अब दोनों एक दूसरो को बाहों समेट लेते है।
इधर ऋषभ उनके इस पल को फोन निकाल कर तस्वीर में कैद कर लेता है और सब लोग वहाँ ताली बजाते है।
लेकिन निषी और प्रतीक अभी भी एक दुसरो की बाहों में है, शायद वो अपने हर गम ओर दूरी को एक साथ भूल देना चाहते है।
सूरज पूरा ढल चुका है,लेकिन उसकी लालिमा अभी भी आसमान में और उस शाम को और खूबशूरत बना रही है।
  ...the beginning of love story...

Note: कहानी कैसी लगी जरूर बताएं और पसन्द आये तो शेयर और कमेंट जरूर करे।

Connect with me on social media
Instagram :-
Storyteller_shivam
Facebook:-

Comments

Post a Comment

Stories you like

kahani - You are my Soulmate or love?

          You are my Soulmate or love? एक रोज जब तुमसे 2 दिन बात नही हुई ओर तीसरे दिन शाम को बात हुई उस रात नींद हमको नही आ रही थी तो सोचा एक बात हमारी तुम्हारी लिखू.. एक खत तुम्हारे लिए लिखू। बस ये डाक से नही मेरे एहसास से तुम तक जाएगा चलो महसूस कराते है तुमको एहसास हमारे... Dear jalebi आज jalebi लिख रहा हूँ little heart फिर कभी ये सच है तुमसे प्यार है या नही पता नही, वैसे हम क्यों करे प्यार तुमसे तेरी इस रूह को मेरे इस शरीर से नही निकाल सकते , तो कैसे प्यार करे तुमसे। काश निकाल पाते तो जरूर मोहब्बत होती तुमसे। अच्छा पुरानी यादों की एक कहानी सुनोगी , वो शाम याद जब हम घर पर थे और तुमने फ़ोन करके बोला था हमने उसको हाँ कर दी तब एक ही सवाल मेरा था क्यों? और तुमने वो एक जवाब दिया जो कभी नही भूलेंगे जाने दो उस दिन से फिर भी हम रोज मिलते और बातो में हम दोनों का एक एहसास था । वो पार्क में जब पहली बार हाथ पकड़ा था तुम्हारा ओर तुमने कुछ नही बोला वो तुम्हारे हाथ  की गरमाहट का एहसास आज भी मेरे हाथ मे है। फिर जब तुम दूर जा रही थी , आँ...

देहात प्रेम- 1 (A love story in village)

                                                                           माँ की 4 मिसकॉल होने के बाद जब प्रतीक ने फ़ोन उठाया, माँ चिल्लाते हुए बोली– "इतनी देर तक कोन सोता है, अकेले बाहर रहते हो तो ऐसे रहोगे।" प्रतीक ने माँ की डांट से बचते हुए कहा- “अरे वो रात को थोड़ा पढ़ते पढ़ते थोड़ी देर हो गयी थी, वैसे फोन क्यों किया इतनी सुबह सुबह अपने कोई काम है?” "हाँ वो छुट्टी हो गयी है ना तेरी कोचिंग की तो गांव चले जाओ बड़े पापा बुला रहे है, वैसे भी दादा जी जब से स्वर्गवासी हो गए है, तुम गाँव नही गए हो।" मम्मी ने आर्डर देते हुए कहा। प्रतीक ना ना करते रह गया, लेकिन माँ के आगे किसकी चलती, जल्दी जल्दी तैयार हो कर अपनी स्कूटी लेकर गाँव निकल गया, जाते जाते अपने भाई कम दोस्त को फ़ोन करके बता दिया में आ रहा हूँ। 3 घण्टे के बाद गाँव के अंदर जाने वाली सड़क के पास जा कर प्रतीक ने जैसे ही गाड़ी मोड़ी एक लड़की तेज़ रफ्...

KAHANI- LOVE IN TRAIN-2 ( मोहब्बत का सफर )

Love in train (part-1)               छुक छुक छुक चलो ये चली रेलगाड़ी............. ट्रेन कानपुर सेंट्रल से निकल चुकी है, धीरे धीरे कानपुर पार करती है। अरे ये क्या दोनों अभी भी एक ही केबिन में! लेकिन ये क्या दोनों एक दूसरे की तरफ देख भी नही रहे है। प्रतीक मन में बड़बड़ाता है टी.टी. सच में कमीना है एक सीट जुगाड़ नही करा सकता है, इतनी फुल है ट्रेन क्या? तभी नजर खिड़की के बाहर पड़ती है, बने वो झोपडी घरो पर गरीबी और गंदगी में रहते लोग और इतनी ठंड में कम कपड़ो में खेलते बच्च्चे जिनको बस अपनी दुनिया से मतलब है। तभी कानपुर की एक अलग खूबसूरती गंगा नदी।  ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी और प्रतीक दरवाजे पर खड़े हो पीछे भागती खूबसुरती को कैद करता है। और ट्रेन संगम के अर्धकुम्भ से प्रयागराज स्टेशन पर आ चुकी थी, प्रतीक केबिन में अंदर आया देखा निषी खिड़की बैठी थी, तभी अजानक लगे ब्रेक से उसकी नजर सीट के नीचे से निकले उस झुमके पर पड़ी जो अभी भी नीचे था शायद लड़ाई के चक्कर में उसे दोनों लोग उठाना भूल गए।  प्रतीक ने झुक कर उसे उठाया तो निषी देख बोली - "ये मेरा है मुझे ...

KAHANI- 90's childhood story- 1 (Cute love story)

"प्रतीक बेटा उठ जाओ स्कूल नही जाना है इतनी देर तक कोन सोता है?" ये है हमारी मम्मी पता नही क्यों हमेशा सुबह के सपने खराब करने की आदत है। "प्रतीक प्रतीक" माँ चिल्लताते हुए बोली। "मे तो उठ गया हूँ मम्मी, बस लेटा ही हूँ।" "अच्छा रुक अभी आती हूँ सुबह सुबह मार खायेगा तू?" अरे ये 90s है इस समय माँ की मार और पापा की डाँट से कोई नहीं बच सकता है। इसलिए माँ के कमरे तक पहुँजने से पहले ही हम नहा कर तैयार हो गए। "आज फिर सिमरन मिलते मिलते रह गयी सपने में  हमको, मम्मी को भी उस टाइम पर चिल्लाना होता है।" में बड़बड़ाते हुए नाश्ते की टेबल पर पहुँचा ही था कि  "क्या बड़बड़ा रहे हो तुम?"  दीदी ने पूछा। में उनकी तरफ देखते हुए बोला "कुछ नही आपसे मतलब।" माँ किचन से मुझे नाश्ता और दूध देते हुए बोली "आज आखिरी पेपर है कल से तुम्हरी गर्मियो की छुट्टी शुरू है तो खुशी में बेकार पेपर मत कर आना समझे।" समझ नही आता मम्मी का खुश होने के लिए बोल रही है या डराने के लिए ,आखिरी एग्जाम है। स्कूल बस में चढ़ने पर जब  सामने सीट पर बैठे अक्षत को देखा तो...

किस्से... ( कुछ अधूरे कुछ पूरे)

                                                    किस्से ...                   ( कुछ अधूरे कुछ पूरे)                कहानी  सुननी है... किसकी..? में तो किस्से सुनता हूँ, तो बताओ किस्से सुनोगे...? मेरे, तुम्हारे, हमारे या दूसरो के या किसी तीसरे किस्से तुम सुनोगे।। मेरी गर्लफ्रैंड, तुम्हारी गर्लफ्रैंड या किसी तीसरे की गर्लफ्रैंड के या गर्लफ्रैंड से हुई रातो को उन खूबशूरत बातो के किस्से तुम सुनोगे।। अरे चलो शुरू से शुरू करते है।। बचपन में किए उन सच्चे झूठे वादों के जो अक्सर अधूरे रह गए या  स्कूल ग्राउंड में हुए उन झगड़ो के यादो के किस्से तुम सुनोगे।। क्लास में पीछे बैठ कर आगे बैठी अपनी क्रश के यूं ही पलट कर टकराती हुई नजरों के किस्से तुम सुनोगे।। एग्जाम में चीटिंग करते हुए पकड़े जाने के या स्कूल की वो आखरी शाम जब तुम रोना तो चाहते थे लेकिन फिर मिलगे का वादा कर रो नही प...

The evening-1 (Known or unknown love story?)

"हेल्लो प्रतीक क्या हो रहा है चल लंच पर चलते है।" ऋषभ प्रतीक के केबिन में आते हुए बोला। "नही यार मूड नही है।" ऋषभ अंदर आकर बोला "क्या हो गया है?" "कुछ नही यार बस ऐसे ही है।" "बता ना कुछ दिन से देख रहा हूँ बहुत परेशान है।" ऋषभ प्रतीक के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला। "कुछ नही एक लड़की है यार बस उसने परेशान कर रखा है यार।" बस प्रतीक ने कहा। "क्या मतलब कुछ समझा नही कोन सी लड़की कहाँ मिल गयी ??" ऋषभ परेशान होते हुए बोला "अच्छा सुन तुझे शुरू से सुनाता हूँ।" "सुना।" चलो चलते है फ़्लैश बैक में booom "बात एक महीने पहले की है , याद है मेने छुट्टी ली थी।" हर शाम की तरह उस शाम भी करवटे बदल रहा था । घड़ी की टिक टिक के साथ समय गुजरता जा रहा था, उफ्फ ये क्यों ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ यार। तभी घड़ी की टिक टिक को तोड़ते हुए दरवाजे की घण्टी बजती है। में सोचता हूँ इस समय को होगा घर पर तो में अकेला रहता हूँ और दोस्तो को पता है में बाहर गया हूँ, फिर कोन होगा? दरवाजा खोला तो कोई नही था, में गुस्से म...

KAHANI - LOVE IN TRAIN- 4 (मोहब्बत का सफर)

Love in train (part-3 सुबह के सूरज की रोशनी खिड़की से सीधे प्रतीक के मुँह पर पड़ते हुए उसको एक नई सुबह का एहसास करा रही थी। आँखे जब नीचे झुकी देखा निषी उसकी गोद में सर रख कर सो रही थी। ना जाने क्यों प्रतीक की हिम्मत नही हुई उसे उठाने की बस एक नज़र उसे देखता रहा, वो मीठी धूप निषी के चेहरे को एक अलग ही चमक दे रहे थी। प्रतीक ने धीरे धीरे से उसके चेहरे पर आते बालों को हटा दिया, लेकिन तभी निषी की आँख खुल गयी। खुद को प्रतीक की गोद में देख उठी और बोली - "सॉरी वो रात को याद नही रहा होगा।" "अरे कोई बात नही।" प्रतीक हँसते हुए बोला। थोड़ी देर बाद अब दोनों अपनी सीट पर चुपचाप बैठे खिड़की के बाहर वो बर्फीले पहाड़ो का देख रहे थे ट्रेन सिक्किम मे आ चुकी थी। बस कुछ घण्टो का सफर और बाकी था। तभी चाय आती है। प्रतीक केबिन की शान्ति को तोड़ते हुए पूछता है - "तुम घर से क्यों भाग कर आयी हो?" निषी हँस देती कहती है - "में ऐसी ही हूँ वो मुझे मज़ा आता है, ऐसा पागलपन करने में वैसे घर पर एक छोटा सा खत छोड़ कर आयी थी।" प्रतीक चौकते हुए "घर में सब परेशान नही होते है?" ...

KAHANI- पहली मुलाकात (एक एहसास तुम्हारा)

Semster holidays बस ख़त्म होने ही वाली थी और उससे बाते कभी पूरी ना होती थी। ना जाने क्यों इस बार घर से हॉस्टल आने पर बुरा नही लग रहा था, ना मन उदास था शायद उससे मिलने के लिए उसे मनाने की कोशिश में वो मान गयी थी। और हम कही और खो गए थे कैसी होगी हमारी पहली मुलाकात क्या खास होगा हमारे साथ ? वो एक शाम जब हम message पर बातो में लगे थे। mobile पर चलते वो तेज़ हाथ बता रहे थे की कितना इंताजर है हमको उनके आने वाले reply का। Me : तो क्या सोचा है तुमने या फिर आज भी ना ही सुनने को मिलेगा हमको ?? She : यार तुम भी!! पहले आ तो जाओ  यहाँ घर से फिर सोचोगी। Me : अभी भी सोचना है तुमको !! हद हो गयी वैसे एक बात बोलू ? She : हाँ जरूर बोलो वैसे भी में मना भी करुँगी तो तुम बोलोगे इतना हक़ तो तुम पर हे ही तो बोल ही लो। Me :कुछ भी ना बोला करो यार वैसे तुम पहली लड़की हो जिसने अपनी pic देने की जगह अपना no. दिया है। very unique. She : i don't like click pics, that's why i don't give. और नंबर दिया तो कम से कम तुम्हारी इतनी प्यारी आवाज तो सुनने को मिल गयी। Me : फिर फालतू बाते की तुमने यार। She : अच्...

KAHANI - जंग...(true story)

To read 1st part - आँसुओ का कारगिल                                           लेकिन आज लाइब्रेरी में बैठ कुछ पुराने अखबारों को पलटा तो समझ पाये क्यों वो इतने खामोश थे। क्यों वो जंग के चार साल बाद ही वो सेवा छोड़ कर आ गए थे। वो उनका एक बक्सा जिसमे उनकी वो यादे और जीते मैडल मिलते, जिसे वो बस दिवाली की सफाई पर निकलते और साफ करके वापस रख देते थे। एक रोज जब उनसे पूछा क्यों इनको सबको दिखाने की जगह इस बक्से में कैद करके रखे थे हो? पापा बोले ये जितना मुझे गर्व देते उतना ही दर्द भी देते है, इसीलिए इनको कैद करके रखता हूँ। उस रोज पापा ना जाने क्यों  मुझको उस जंग की कहानी सुनाने को तैयार थे और में उतना ही सुनने को उत्सुक था। आगे की कहानी पापा की जुबानी बेटा उस दिन जंग ऐलान हो चूका था। हम उन सालो को उनकी औकात दिखने की तैयारी में लगे थे और साथ में बाते भी कर रहे थे की जीतने के बाद जश्न कैसे मनाएंगे तभी मेरा दोस्त अपने बटुए से अपनी माँ और पत्नी की तस्वीर निकल कर बोल माँ इस बार दिवाली ...