To read 3rd part-
Love in train (part-3)
Love in train (part-3)
LOVE IN TRAIN (LAST PART)
मोहब्बत का सफर
सुबह के सूरज की रोशनी खिड़की से सीधे प्रतीक के मुँह पर पड़ते हुए उसको एक नई सुबह का एहसास करा रही थी।
आँखे जब नीचे झुकी देखा निषी उसकी गोद में सर रख कर सो रही थी। ना जाने क्यों प्रतीक की हिम्मत नही हुई उसे उठाने की बस एक नज़र उसे देखता रहा , वो मीठी धूप निषी के चेहरे को एक अलग ही चमक दे रहे थी। प्रतीक ने धीरे धीरे से उसके चेहरे पर आते बालों को हटा दिया , लेकिन तभी निषी की आँख खुल गयी । खुद को प्रतीक की गोद में देख उठी और बोली - "सॉरी वो रात को याद नही रहा होगा।"
"अरे कोई बात नही।" प्रतीक हँसते हुए बोला।
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थोड़ी देर बाद अब दोनों अपनी सीट पर चुपचाप बैठे खिड़की के बाहर वो बर्फीले पहाड़ो का देख रहे थे ट्रेन सिक्किम मे आ चुकी थी। बस कुछ घण्टो का सफर और बाकी था। तभी चाय आती है।
प्रतीक केबिन की शान्ति को तोड़ते हुए पूछता है - "तुम घर से क्यों भाग कर आयी हो?"
निषी हँस देती कहती है - "में ऐसी ही हूँ वो मुझे मज़ा आता है, ऐसा पागलपन करने में वैसे घर पर एक छोटा सा खत छोड़ कर आयी थी।"
प्रतीक चौकते हुए "घर में सब परेशान नही होते है ?"
"अरे नही उनको पता है, में ऐसी ही हूँ और विश्वास है उनको मुझ पर और फ़ोन भी तो है मेरे पास तो कोई बात ही नहीँ।" निषी चाय की गरम गरम चुस्की लेते हुए बोलती जा रही थी।
"और तुम बताओ तुम्हारे एक फ़ोन से एक अनजान शहर में गाड़ी कैसे आ गयी ?" निषी ने पूछा।
प्रतीक - "भारत के सबसे ज्यादा होटलो के मालिक को जानती तो होगी।"
"अरे उनको कोन नही जानता वीर सिंह है।" निषी उत्सुकता से बोलती है ।
"हाँ तो में उनका ही बेटा हूँ।" प्रतीक शांत होते हुए बोला।
"तुम वो प्रतीक हो और ऐसे घूम रहे हो डर नही लगता तुमको" निषी चौकते हुए बोली।
प्रतीक - "अरे दुनिया बस मेरा नाम जानती है मेरी शक्ल नही जैसी की तुम भी बस अभी तक नाम ही जानती थी।"
तभी ट्रेन के एकदम से ब्रेक लगते है। इस झटके से निषी की चाय एकदम से प्रतीक के ऊपर गिर जाती है।
निषी हड़बड़ा कर बोलती है-"ओह्ह सॉरी वो गलती से सॉरी।"
"अरे कोई बात नही में अभी साफ कर लेता हूँ।" प्रतीक अपनी शर्ट साफ करते हुए बोला ।
प्रतीक बाथरूम आके अपनी शर्ट चेंज करता है और गेट से बाहर देखता है बर्फ गिर रही है ठंड बड़ चुकी है।
ट्रेन सीटी मारते हुए स्टेशन से निकलती है। अरे ये क्या ये तो आखिरी स्टेशन से इसके बाद सिलीगुड़ी प्रतीक सोचते हुए अंदर आता है।
इधर निषी उस सीट पर कल से पड़े उस झुमके को उठती है और अपने बालों को एक तरफ दूसरे कान पहन लेती है। ये देख प्रतीक मुस्करा देता है।
"क्या क्यों हँस रहे हो ?" निषी प्रतीक से पूछती है।
प्रतीक - "कुछ नहीं ।"
"मतलब इतनी अकड़ तारीफ भी नही कर सकते ।" निषी मन में सोचते हुए अपना बिखरा सामान पैक करती है।
"तो तुम्हारे साथ सफर बहुत मजेदार रहा बस हम दोनों की मंजिल आने वाली है।" प्रतीक सामान पैक करते हुए बोला।
निषी हँसते हुए बोली -"हाँ ये सफर जिंदगी भर याद रहेगा पता नहीँ अब कब मुलाकात हो हमारी शायद कभी हो भी नही।"
"अरे पागल एक बार बोल तो पुरे दार्जलिंग को बता दू मेरे साथ कोई आया है इस शहर को एक खूबशूरत कहानी देने।" प्रतीक मन में सोचता है।
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"अरे क्या सोचने लगे तुम?" निषी प्रतीक को सपने से निकलते हुए बोली ।
प्रतीक -"अरे कुछ नहीं।"
"तुम बोल दो पागल ये शहर क्या पुरानी दुनिया को पागल कर देगे हम दोनों मिल कर।" निषी सोचने लगी। तभी
प्रतीक बोला- "अरे अब तुम कहाँ खो गयी आगयी अपनी चलो उतरो।"
दोनों उतर कर एक इस तरफ तो दूसरा उस तरफ चले जाते है ।
निषी मन में बोलती "जाने दो कुछ कहानी अक्सर अधूरी रह जाती है।"
निषी स्टेशन से बाहर निकल जाती है।
आँखे जब नीचे झुकी देखा निषी उसकी गोद में सर रख कर सो रही थी। ना जाने क्यों प्रतीक की हिम्मत नही हुई उसे उठाने की बस एक नज़र उसे देखता रहा , वो मीठी धूप निषी के चेहरे को एक अलग ही चमक दे रहे थी। प्रतीक ने धीरे धीरे से उसके चेहरे पर आते बालों को हटा दिया , लेकिन तभी निषी की आँख खुल गयी । खुद को प्रतीक की गोद में देख उठी और बोली - "सॉरी वो रात को याद नही रहा होगा।"
"अरे कोई बात नही।" प्रतीक हँसते हुए बोला।
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थोड़ी देर बाद अब दोनों अपनी सीट पर चुपचाप बैठे खिड़की के बाहर वो बर्फीले पहाड़ो का देख रहे थे ट्रेन सिक्किम मे आ चुकी थी। बस कुछ घण्टो का सफर और बाकी था। तभी चाय आती है।
प्रतीक केबिन की शान्ति को तोड़ते हुए पूछता है - "तुम घर से क्यों भाग कर आयी हो?"
निषी हँस देती कहती है - "में ऐसी ही हूँ वो मुझे मज़ा आता है, ऐसा पागलपन करने में वैसे घर पर एक छोटा सा खत छोड़ कर आयी थी।"
प्रतीक चौकते हुए "घर में सब परेशान नही होते है ?"
"अरे नही उनको पता है, में ऐसी ही हूँ और विश्वास है उनको मुझ पर और फ़ोन भी तो है मेरे पास तो कोई बात ही नहीँ।" निषी चाय की गरम गरम चुस्की लेते हुए बोलती जा रही थी।
"और तुम बताओ तुम्हारे एक फ़ोन से एक अनजान शहर में गाड़ी कैसे आ गयी ?" निषी ने पूछा।
प्रतीक - "भारत के सबसे ज्यादा होटलो के मालिक को जानती तो होगी।"
"अरे उनको कोन नही जानता वीर सिंह है।" निषी उत्सुकता से बोलती है ।
"हाँ तो में उनका ही बेटा हूँ।" प्रतीक शांत होते हुए बोला।
"तुम वो प्रतीक हो और ऐसे घूम रहे हो डर नही लगता तुमको" निषी चौकते हुए बोली।
प्रतीक - "अरे दुनिया बस मेरा नाम जानती है मेरी शक्ल नही जैसी की तुम भी बस अभी तक नाम ही जानती थी।"
तभी ट्रेन के एकदम से ब्रेक लगते है। इस झटके से निषी की चाय एकदम से प्रतीक के ऊपर गिर जाती है।
निषी हड़बड़ा कर बोलती है-"ओह्ह सॉरी वो गलती से सॉरी।"
"अरे कोई बात नही में अभी साफ कर लेता हूँ।" प्रतीक अपनी शर्ट साफ करते हुए बोला ।
प्रतीक बाथरूम आके अपनी शर्ट चेंज करता है और गेट से बाहर देखता है बर्फ गिर रही है ठंड बड़ चुकी है।
ट्रेन सीटी मारते हुए स्टेशन से निकलती है। अरे ये क्या ये तो आखिरी स्टेशन से इसके बाद सिलीगुड़ी प्रतीक सोचते हुए अंदर आता है।
इधर निषी उस सीट पर कल से पड़े उस झुमके को उठती है और अपने बालों को एक तरफ दूसरे कान पहन लेती है। ये देख प्रतीक मुस्करा देता है।
"क्या क्यों हँस रहे हो ?" निषी प्रतीक से पूछती है।
प्रतीक - "कुछ नहीं ।"
"मतलब इतनी अकड़ तारीफ भी नही कर सकते ।" निषी मन में सोचते हुए अपना बिखरा सामान पैक करती है।
"तो तुम्हारे साथ सफर बहुत मजेदार रहा बस हम दोनों की मंजिल आने वाली है।" प्रतीक सामान पैक करते हुए बोला।
निषी हँसते हुए बोली -"हाँ ये सफर जिंदगी भर याद रहेगा पता नहीँ अब कब मुलाकात हो हमारी शायद कभी हो भी नही।"
"अरे पागल एक बार बोल तो पुरे दार्जलिंग को बता दू मेरे साथ कोई आया है इस शहर को एक खूबशूरत कहानी देने।" प्रतीक मन में सोचता है।
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"अरे क्या सोचने लगे तुम?" निषी प्रतीक को सपने से निकलते हुए बोली ।
प्रतीक -"अरे कुछ नहीं।"
"तुम बोल दो पागल ये शहर क्या पुरानी दुनिया को पागल कर देगे हम दोनों मिल कर।" निषी सोचने लगी। तभी
प्रतीक बोला- "अरे अब तुम कहाँ खो गयी आगयी अपनी चलो उतरो।"
दोनों उतर कर एक इस तरफ तो दूसरा उस तरफ चले जाते है ।
निषी मन में बोलती "जाने दो कुछ कहानी अक्सर अधूरी रह जाती है।"
निषी स्टेशन से बाहर निकल जाती है।
तभी
"वैसे झुमका अच्छा लग रहा है तुम पर।" प्रतीक अजानक से आ के साथ चलते हुए बोलता है।
निषी बगल में उसे देख बस मुस्करा देती है।
"लगता है ये शहर एक और कहानी अपने अंदर लिखना चाहता है।" प्रतीक बोलता है।
और बस धीरे से निषी का हाथ पकड़ लेता है।
दोनों साथ में चल देते है।
...the beginning of a story...
Happy valentine day...
"वैसे झुमका अच्छा लग रहा है तुम पर।" प्रतीक अजानक से आ के साथ चलते हुए बोलता है।
निषी बगल में उसे देख बस मुस्करा देती है।
"लगता है ये शहर एक और कहानी अपने अंदर लिखना चाहता है।" प्रतीक बोलता है।
और बस धीरे से निषी का हाथ पकड़ लेता है।
दोनों साथ में चल देते है।
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Awesome ji kamal kar diya fantastic 👌👌👌👌👌👌aborable heart touching story 👌👌👌
ReplyDeleteThnks yr itne pyr k liye thnk u so much
DeleteJust love it☜☆☞
ReplyDeleteThnk u
DeleteI miss you
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