To read 1st part-
Love in train (part-1)
Love in train (part-1)Love in train (part-1)
LOVE IN TRAIN (PART-2)
मोहब्बत का सफर
मोहब्बत का सफर
छुक छुक छुक चलो ये चली रेलगाड़ी...................
ट्रेन कानपुर सेंट्रल से निकल चुकी है, धीरे धीरे कानपुर पार करती है। अरे ये क्या दोनों अभी भी एक ही केबिन में लेकिन ये क्या दोनों एक दूसरे की तरफ देख भी नही रहे है । प्रतीक मन में बड़बड़ाता है टी.टी. सच में कमीना है एक सीट जुगाड़ नही करा सकता है, इतनी फुल है ट्रेन क्या ?
तभी नजर खड़की के बाहर पड़ती है, बने वो झोपडी घरो पर गरीबी और गंदगी में रहते लोग और इतनी ठंड में कम कपड़ो में खेलते बच्च्चे जिनको बस अपनी दुनिया से मतलब है। तभी कानपुर की एक अलग खूबसुरती गंगा नदी। ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी और प्रतीक दरवाजे पर खड़े हो पीछे भागती खूबसुरती को कैद करता है। और ट्रेन संगम के अर्धकुम्भ से प्रयागराज स्टेशन पर आ चुकी थी, प्रतीक केबिन में अंदर आया देखा निषी खिड़की बैठी थी , तभी अजानक लगे ब्रेक से उसकी नजर सीट के नीचे से निकले उस झुमके पर पड़ी जो अभी भी नीचे था शायद लड़ाई के चक्कर में उसे दोनों लोग उठाना भूल गए । प्रतीक ने झुक कर उसे उठाया तो निषी देख बोली - "ये मेरा है मुझे दो।"
प्रतीक चुपचाप दे कर बैठ जाता है सोचता है इतनी अकड़ उफ्फ!!!
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तभी एक आवाज से प्रतीक से चौक जाता है आवाज निषी की उससे बोली- "सुनो i m sorry वो कमीने टी.टी. की गुस्सा आप पर निकल गयी, वैसे में निषी और आप ?"
प्रतीक सोच में था इतनी अकड़ू लड़की इतनी प्यार से कैसे ?
निषी फिर बोली- "क्या सो सोचने लगे आप ?"
"अरे कुछ नहीं मे प्रतीक और आप मुझे तुम बोल सकती हो और एक बात और टी.टी. सच में कमीना था।" प्रतीक ने कहा ।
और दोनों हँस देते है।
दोनों की बातों के साथ ट्रेन प्रयागराज से निकल चुकी है धीरे धीरे, लड़ाई से शुरू हुई अब दोस्ती में बदल रही थी । प्रतीक पूछता है-"तुमको को कहाँ तक जाना है ?"
ट्रेन कानपुर सेंट्रल से निकल चुकी है, धीरे धीरे कानपुर पार करती है। अरे ये क्या दोनों अभी भी एक ही केबिन में लेकिन ये क्या दोनों एक दूसरे की तरफ देख भी नही रहे है । प्रतीक मन में बड़बड़ाता है टी.टी. सच में कमीना है एक सीट जुगाड़ नही करा सकता है, इतनी फुल है ट्रेन क्या ?
तभी नजर खड़की के बाहर पड़ती है, बने वो झोपडी घरो पर गरीबी और गंदगी में रहते लोग और इतनी ठंड में कम कपड़ो में खेलते बच्च्चे जिनको बस अपनी दुनिया से मतलब है। तभी कानपुर की एक अलग खूबसुरती गंगा नदी। ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी और प्रतीक दरवाजे पर खड़े हो पीछे भागती खूबसुरती को कैद करता है। और ट्रेन संगम के अर्धकुम्भ से प्रयागराज स्टेशन पर आ चुकी थी, प्रतीक केबिन में अंदर आया देखा निषी खिड़की बैठी थी , तभी अजानक लगे ब्रेक से उसकी नजर सीट के नीचे से निकले उस झुमके पर पड़ी जो अभी भी नीचे था शायद लड़ाई के चक्कर में उसे दोनों लोग उठाना भूल गए । प्रतीक ने झुक कर उसे उठाया तो निषी देख बोली - "ये मेरा है मुझे दो।"
प्रतीक चुपचाप दे कर बैठ जाता है सोचता है इतनी अकड़ उफ्फ!!!
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तभी एक आवाज से प्रतीक से चौक जाता है आवाज निषी की उससे बोली- "सुनो i m sorry वो कमीने टी.टी. की गुस्सा आप पर निकल गयी, वैसे में निषी और आप ?"
प्रतीक सोच में था इतनी अकड़ू लड़की इतनी प्यार से कैसे ?
निषी फिर बोली- "क्या सो सोचने लगे आप ?"
"अरे कुछ नहीं मे प्रतीक और आप मुझे तुम बोल सकती हो और एक बात और टी.टी. सच में कमीना था।" प्रतीक ने कहा ।
और दोनों हँस देते है।
दोनों की बातों के साथ ट्रेन प्रयागराज से निकल चुकी है धीरे धीरे, लड़ाई से शुरू हुई अब दोस्ती में बदल रही थी । प्रतीक पूछता है-"तुमको को कहाँ तक जाना है ?"
"सिलीगुड़ी दार्जलिंग घूमने और तुमको ?" निषी पलट के पूछती है ।
प्रतीक चेहरे पर चमक और मुस्कराहट दोनों को लाके कहता है "मे भी सिलीगुड़ी घूमने, वाह क्या बात है, वैसे एक बात पुछू ?"
निषी- हाँ पूछो।
"कल तो तुम साडी में थी बिलकुल भारतीय नारी की तरह लेकिन आज ये इतना रफ़ लुक क्यों ?" प्रतीक ने जानने की उत्सुकता से पूछा।
निषी बोली- "अरे यार वो कल घर में पार्टी थी तो और मेरी माँ को पसंद नही की में ऐसे फ़टे छोटे कपड़े पहनू इसीलिए और वैसे तुम भी कल जहाँ तक मुझे थोड़ा बहुत याद है फॉर्मल लुक दाड़ी के साथ थे लेकिन आज तो अलग ही है में पहचान नही पायी।"
प्रतीक चेहरे पर चमक और मुस्कराहट दोनों को लाके कहता है "मे भी सिलीगुड़ी घूमने, वाह क्या बात है, वैसे एक बात पुछू ?"
निषी- हाँ पूछो।
"कल तो तुम साडी में थी बिलकुल भारतीय नारी की तरह लेकिन आज ये इतना रफ़ लुक क्यों ?" प्रतीक ने जानने की उत्सुकता से पूछा।
निषी बोली- "अरे यार वो कल घर में पार्टी थी तो और मेरी माँ को पसंद नही की में ऐसे फ़टे छोटे कपड़े पहनू इसीलिए और वैसे तुम भी कल जहाँ तक मुझे थोड़ा बहुत याद है फॉर्मल लुक दाड़ी के साथ थे लेकिन आज तो अलग ही है में पहचान नही पायी।"
प्रतीक ने हँसते हुए कहा- "पहचान तो हम भी नही पाये तुमको वैसे और ये लुक तो बस घूमने के लिए बनाया है।"
रात के 11:45 हो रहे थे दोनों बातो में इतना व्यस्त की सोना ही भूल गए ।
"अरे यार प्यास और भूख लगी है कुछ है तुम्हारे पास" निषी ने पूछती है।
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प्रतीक जवाब देता है- "नही अभी तो नही लेकिन ट्रैन की स्पीड कम हो रही है कोई स्टेशन आ रहा है ले लेना कुछ भी।"
ट्रेन स्टेशन पर आके रूकती है निषी कुछ पैसे लेकर नीचे जाती है और उस छोटे से बिलकुल खाली स्टेशन पर अपने लिए मुश्किल से फ्रूट ढून्ढ कर खरीदती है जैसे ही वापस ट्रेन की तरफ आती है, की तभी एक आदमी अजानक से उसके हाथ से पैसे झीन कर भागता है।
निषी चिल्लाती है- "चोर चोर!!"
लेकिन किसी को आसपास ना पा कर खुद उसके पीछे भागती है, वो चोर सीढ़ियों के ऊपर से ऊपर तरफ जाता है।
इधर प्रतीक आवाज सुन कर बाहर आता है लेकिन उसे निषी नही दिखती तो उसे वो इधर उधर देखने लगता है। यहाँ ओवर ब्रिज के ऊपर निषी को एक चौकीदार वाला सोता दिखता वो चिल्लाती है- "ओये चोर चौकीदार हड़बड़ा के उठता है और चोर की तरफ लपकता है लेकिन चोर उसे धक्का दे कर भाग जाता है।
निषी दौड़ते हुए चौकीदार से बोलती है- "फट्टू चूड़ियाँ पहन ले कमीने।"
तभी प्रतीक की नजर ब्रिज पर भागती निषी पर पड़ती है वो उसकी तरफ भागने लगता है लेकिन कुछ ही देर में ट्रेन का हॉर्न बजता है और ट्रेन चल देती है।
दोनों हॉर्न सुन के चोर को छोड़ ट्रेन की तरफ भागते है, लेकिन ज्यादा दूर निकल आने के कारण ट्रेन रफ्तार पकड़ लेती है और ट्रेन स्टेशन से निकल जाती है। दोनों भागते भागते थक जाते है लेकिन ट्रेन जा चुकी है। अब दोनों एक अनजान स्टेशन पर एक दूसरे को देख रहे है बस...
...to be continue...
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रात के 11:45 हो रहे थे दोनों बातो में इतना व्यस्त की सोना ही भूल गए ।
"अरे यार प्यास और भूख लगी है कुछ है तुम्हारे पास" निषी ने पूछती है।
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प्रतीक जवाब देता है- "नही अभी तो नही लेकिन ट्रैन की स्पीड कम हो रही है कोई स्टेशन आ रहा है ले लेना कुछ भी।"
ट्रेन स्टेशन पर आके रूकती है निषी कुछ पैसे लेकर नीचे जाती है और उस छोटे से बिलकुल खाली स्टेशन पर अपने लिए मुश्किल से फ्रूट ढून्ढ कर खरीदती है जैसे ही वापस ट्रेन की तरफ आती है, की तभी एक आदमी अजानक से उसके हाथ से पैसे झीन कर भागता है।
निषी चिल्लाती है- "चोर चोर!!"
लेकिन किसी को आसपास ना पा कर खुद उसके पीछे भागती है, वो चोर सीढ़ियों के ऊपर से ऊपर तरफ जाता है।
इधर प्रतीक आवाज सुन कर बाहर आता है लेकिन उसे निषी नही दिखती तो उसे वो इधर उधर देखने लगता है। यहाँ ओवर ब्रिज के ऊपर निषी को एक चौकीदार वाला सोता दिखता वो चिल्लाती है- "ओये चोर चौकीदार हड़बड़ा के उठता है और चोर की तरफ लपकता है लेकिन चोर उसे धक्का दे कर भाग जाता है।
निषी दौड़ते हुए चौकीदार से बोलती है- "फट्टू चूड़ियाँ पहन ले कमीने।"
तभी प्रतीक की नजर ब्रिज पर भागती निषी पर पड़ती है वो उसकी तरफ भागने लगता है लेकिन कुछ ही देर में ट्रेन का हॉर्न बजता है और ट्रेन चल देती है।
दोनों हॉर्न सुन के चोर को छोड़ ट्रेन की तरफ भागते है, लेकिन ज्यादा दूर निकल आने के कारण ट्रेन रफ्तार पकड़ लेती है और ट्रेन स्टेशन से निकल जाती है। दोनों भागते भागते थक जाते है लेकिन ट्रेन जा चुकी है। अब दोनों एक अनजान स्टेशन पर एक दूसरे को देख रहे है बस...
...to be continue...
To read 1st part-
To read 3rd part-
Love in train (part-3)
To read last part-
Love in train (last part)
awesome sir me story me kho jata hu apki humesha bahut hi jada acha likhte h aap
ReplyDeleteThank u dear for this compliment
DeleteVery nice
ReplyDeleteThank u
DeleteVery nice
ReplyDeleteThanku
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