"चलो चलो 10 मिनट का स्टॉप है जिसको जो करना है या खाना हो खा ले, बस कान्हापुर गाँव जा कर ही रुकेगी।" कंडक्टर चिल्लाते हुए नीचे उतर गया।
प्रतीक उसकी बात अनसुनी कर आँख बंद किये बैठा रहा। शायद इतने सालों बाद वापस घर जा रहा था तो ये सफर जल्द से जल्द खत्म करने का इंताजर था और घर बस 2-3 घण्टे ही दूर था।
लेकिन तभी खिड़की से आती एक आवाज ने प्रतीक की आजनक आँख खोल दी।
"मूंगफली ले लो दस रुपये पैकेट गरम है गरम ले लो " उस बच्चे के मुँह से आवाज सुनते ही प्रतीक अपने अतीत में चला गया।
"प्रतीक उठो बस आने वाली है मूंगफली नही बेचना जल्दी करो" ढाबे वाले चाचा उसे उठाते हुए बोलते है।
"अरे हाँ चाचा वो ज़रा आँख लग गयी थी आज सोया नही हूँ स्कूल में आज गणित का पेपर था तो रात को पढ़ाई की थी।"
चाचा प्रतीक के सर पर हाथ फेरते हुए बोले "शाबाश ऐसे ही पढों एक दिन तुम जरूर सच्चाई और मेहनत का प्रतीक बनोगे।"
प्रतीक मुस्करा दिया तभी सड़क से बस उतरते हुए ढाबे की तरफ आ गयी और जैसे ही रुकी प्रतीक तुरन्त अपना मूंगफली के पैकेट ले कर बस की तरफ मूंगफली ले लो गरम गरम मूंगफली ले लो चिल्लाते हुए भागा पूरी जान लगा कर मूंगफली बेचने लगा की जल्दी से जल्दी सारी मूंगफली बिक जाये एक जोश और उम्मीद थी उसकी आवाज में की आज तो खाली थैला लेके कर घर जाऊँगा।
एक पैकेट बेच कर और जोर से चिल्लाता और आज उन 20 मिनट में आज उसका थैला खली हो चुका था । प्रतीक ये देख बड़ा खुश हुआ और भागता हुआ चाचा के पास पहुँच कर बोला "चाचा आज देखो मेने सारी मूंगफली बेच दी।"
चाचा शाबाशी देते बोले "अब घर जा माँ इंतज़ार कर रही होगी।"
"चाचा ये लो 100 रूपये आप मेरे लिए और मूंगफली ला देना में बाजार नही जा पाउँगा कल भी पेपर है आज पढ़ना है।" इतना कह कर और 100 रूपये दे कर प्रतीक उस बस में बैठ घर की तरफ चल दिया।
जैसे ही घर पहुँज माँ को लेटा देख बोला "माँ आज सारी मूंगफली बेच दी आज तुम खीर बना दे हम दोनों खीर खायेंगे।"
माँ ने पैसे लेते हुए बोली "जा तू थक गया होगा हाथ मुँह धोले में समान ले कर आती हूँ ।"
माँ ने चुपचाप कुछ पैसे गुल्लक में छुपा के रख दिए और थोड़े पैसो का थोड़ा सामान ले आयी और खीर बना के प्रतीक को दी। तभी प्रतीक बोला- "माँ तू नही खायेगी तेरी खीर कहाँ है ?"
माँ बोली "मेरे लाल अभी और है, तू खा ले में बाद में खाऊँगी आज मालिकन के यहाँ मिठाई बनी थी तो खा के आयी हूँ।"
"माँ एक दिन में बड़ा अफसर बन जाऊँगा फिर तुझे उस खड़ूस मालकिन के यहाँ गाली खाने कभी नही जाने दूँगा।"
ऐसे ही एक शाम वापस घर लौट कर आजनक माँ को दर्द में करहाते सुन प्रतीक घबरा गया उनका शरीर बुखार से तप रहा था वो भगते हुए अस्पताल गया लेकिन गाँव में सुविधा के अभाव के कारण माँ चल बसी अब इस दुनिया में वो अकेला रह गया , उस रात रो भी ना पाया समझ ना पाया हकीकत है या सपना।
तभी एक आवाज ने उसे अतीत से आज में लाके पटक दिया- "साहब मूंगफली ले लो"
प्रतीक अपने बहते आँसू पोछते हुए "बोला क्या नाम है तुम्हारा?"
साहब "सूरज"
बेटा स्कुल जाते हो?
"नही साहब, साहब मूंगफली लोगे?"
अच्छा दो एक पैकेट।
तभी बस के पीछे एक बड़ी सी कार आके रूकती है और एक बॉडीगार्ड निकल कर प्रतीक से बोलता है "सर कार सही हो गयी आप कार से चल सकते है।"
प्रतीक उसे मना कर देता है और बस हॉर्न देती हुई गाँव की तरफ चल देती है और बॉडीगार्ड कार में बस के पीछे पीछे।
बस जैसे जैसे गाँव के करीब पहुँच रही होती है प्रतीक की वो माँ के गुजर जाने के बाद की दर्द भरी यांदे ताज़ा हो होती है।
तभी गाँव पहुँज कर जब बस से उतरता है तो पीछे से कार से उसकी पत्नी तुरते हुए बोलती है "क्या बाकी है यहाँ जो इतने सालों बाद आप यहाँ आये हो? वो टुटा घर बेच दो उसे आप ।"
प्रतीक मुस्करा करा अपने घर की तरफ चल देता है ।
शायद कुछ था जो आज इतने सालों बाद उसको यहाँ ले आयी।
जानकारी : क्यों प्रतीक गाँव वापस आया जानने के लिए कहानी के दूसरे अंक के लिए कमेंट करे और कहानी कैसी लगी कमेंट करके ज़रूर बताये।
...to be continue...
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Awesome story
ReplyDeletethank u
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