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The watch... (love story of luck or unluck)

      


2 December 2016

"Hey, good morning happy birthday. "
"Thank you."
"कहाँ हो तुम ?"
"बस j k temple आया हूं।" प्रतीक ने कहा।
'तुम इतनी सुबह सुबह मंदिर पहुंच गए।" निषी ने चौकते हुए प्रतीक से फोन पर कहा।
"हाँ आ जाओ मेरे पास फिर साथ चलते हैं, जहां जाना होगा।" प्रतीक उत्सुक होते हुए बताया।
"चलो आती हूं वैसे भी birthday boy को आज कौन मना करेगा।"
निषी नखरे दिखाते हुए बोली।


J k temple कानपुर की खूबसूरत जगहों में से एक है। राधा कृष्ण का मंदिर जो एक खूबसूरत एहसास कराता है और फिर प्रतीक के  इस खाली दिन पर निषी की वहाँ पर मुलाकात इस शहर की खूबसूरती को और सुंदर बना रही थी।

प्रतीक निशी मिलते है और फिर मंदिर से मूवी फिर मूवी से घर और प्रतीक  के बर्थडे पर उसके बर्थडे का सबसे खूबसूरत गिफ्ट एक hug.

अरे कहानी का टाइटल का जिक्र तो हुआ ही नहीं, अब होगा शाम के डिनर के साथ । हाँ शाम का डिनर अब निशी को 8:00 बजे हॉस्टल भी तो पहुंचना होता था 

कॉलेज लाइफ की ये बातें अक्सर बहुत खूबसूरत होती है कि जिंदगी हमारे हिसाब से चलती है। खूबसूरत कार्ड और एक घड़ी के साथ इस शाम का अंत हुआ। कलाई जो अक्सर खाली रहती थी अब उसमें एक सिल्वर कलर की प्यारी सी घड़ी आ गई  थी।


चलो शुरू करते हैं अब यह घड़ी का किस्सा प्रतीक, निषी, घड़ी और एक कहानी का खास किरदार ट्रैन।

10 december 2016
शाम के कुछ 6:00 बज रहे होंगे एक सुपरफास्ट ट्रेन से कानपुर सेंट्रल से घर जाने के लिए प्रतीक फटाफट  हॉस्टल से स्टेशन के लिए निकला ट्रैफिक होने कारण बार-बार घड़ी देख रहा था, कि कहीं ट्रेन छूट न जाए लेकिन जब स्टेशन पहुंचा तो ट्रेन स्टेशन पर ही खड़ी थी जल्दी से ट्रेन में बैठ गया।


निषी को फोन लगाया" कि ट्रेन मिल गई है मैं घर जा रहा हूं।"

लेकिन न जाने क्यों यह ट्रेन चलने को तैयार ही नहीं थी,  प्रतिक बार-बार घड़ी में समय देख रहा था है कि कानपुर के सेंट्रल स्टेशन से एक लोकल स्टेशन गोविंदपुरी तक पहुंचने में ट्रेन एक घंटा लगा दिया। 

इतने गुस्से में था कि जो ट्रैन  उसे 2 घंटे में ही घर पहुंच आती आज उसने एक घंटा यही लगा दिया प्रतीक उस लोकल स्टेशन से उतरकर हॉस्टल वापस आ गया।
निषी को फोन लगाया ओर कहा - "में उतर के वापस हॉस्टल आ गया हूं, एक-दो दिन बाद जाऊंगा ट्रेन बहुत ज्यादा लेट हो चुकी थी, रात हो जाता मुझे घर पहुंचते-पहुंचते।"
निषी बोली- "कोई बात नहीं है 2 दिन बाद निकल जाना।

13 december 2016
प्रतीक एक बार फिर घर के टाइम से आराम से निकला।
सुबह की ट्रेन थी सुबह 6:00 बज रहे थे।
बहुत तेज ठंड हो रही थी ठीक स्वेटर पहने चुपचाप जल्दी से ट्रेन में बैठ गया। passanger ट्रैन आराम से ही चलती है तो प्रतीक ने फोन निकाला और मूवी देखने लगा।
जब थोड़ी देर बाद भूख लगी तो प्रतीक ने जब अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकने के लिए खड़ी हुई तो,  प्रतीक स्टेशन का नाम पढ़कर एकदम चौक  गया।


प्रतीक पहली बार गलत ट्रेन में बैठा गया और ट्रेन घाटमपुर पहुंच चुकी थी ।
प्रतीक आज फिर गुस्से में था घड़ी में देखा सुबह के 8:00 बज रहे थे उसने निशि को फोन लगाया- "निशी गलत ट्रेन में बैठ गया हूं, क्या करूं?"
"अब बताओ मैं वापस कानपुर आ रहा हूं, दूसरी ट्रेन पकड़ कर तुम मुझे स्टेशन लेने आओगी। आ जाओ ना मूड बहुत खराब है।"


निषी ने कहा- "हां ठीक है, मैं आती हूं। तुम दूसरी ट्रेन से कानपुर स्टेशन आ जाओ।"
दोनो स्टेशन पर मिलते है।
निषी प्रतीक का मूड खराब देखकर उसे उसके फेवरेट छोले भटूरे खिलाने ले चलती है।
"कुछ खा लो भूख भी लगी होगी तुमको।"
प्रतीक गुस्से में कहता है "कि आजतक गलत ट्रैन में नहीं बैठा कि अचानक मेरे साथ क्यों हो रहा है।"
"इतना क्यों सोच रहे हो कभी-कभी हो जाता है, इतना क्यों परेशान हो रहे हो।" निषी ने प्यार से समझाते हुए प्रतीक से कहा।


दोनों नाश्ता करके अपने-अपने होस्टल चले गए।
कुछ दिन बाद प्रतीक एक बार फिर घर जाने के लिए तैयार हुआ।

20 december 2016
इस बार शाम के 6:00 बजे की ट्रेन सही टाइम पर ट्रेन चली और सही टाइम पर प्रतीक स्टेशन पहुंच गया।
हर चीज सही समय पर हो रही थी, निषी से बातें करते हुए कब समय कट रहा था पता ही नहीं चला।
प्रतीक घर के स्टेशन पहुंचने से 30 किलोमीटर पहले ही निषी से बात करते हुए बोल- "घर आने वाला है मैं फोन रख रहा हूं।"
खिड़की से बाहर का नजारा देखते हुए पता नहीं क्या सोचते सोचते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला।
आँख खोली तो घर का स्टेशन निकल चुका था, प्रतीक एक स्टेशन आगे आ गया था।
प्रतीक हड़बड़ा कर उसी स्टेशन पर उतर गया और निषी को फोन लगाया- "मैं आगे आ गया हूं मेरा stop छूट गया इस बार।"


निशी गुस्से में बोली- "कैसे क्या करते हो तुम! पहले घर फोन लगा कर बताओ कि तुम आगे स्टेशन पर आ गए हो।"
प्रतीक तुरंत घर फोन लगाकर मम्मी को बताता है " में आगे स्टेशन पर आ गया हूं मम्मी परेशान मत होना। में हाईवे से कुछ ना कुछ पकड़ कर घर वापस आता हूं।"


जिस शहर कभी आना नही हुआ आज उस शहर की रात को सुनसान सड़को में चलना पड़ रहा है। बिल्कुल jab we met वाली फील आ रही थी बस निषी की कमी थी।

प्रीतिक को छोटे से शहर के स्टेशन से हाईवे की तरफ चलता चला जा रहा था कि कुछ मिल जाए तो लिफ्ट लेले। फोन पर बाते ओर पैदल रास्ता।


निषी कुछ सोचते हुए बोली- "एक बात तुमने नोटिस की है।"
"क्या, कौन सी बात?"
निषी ने कहा- "जब जब तुम्हारे हाथ मे मेरी घड़ी होती है, तुम्हारी ट्रैन के साथ कुछ ना कुछ होता रहता है।
तुम्हारे लिए unlucky घड़ी है उसको उतार के फेंक दो ना।"


प्रतीक तेज गुस्सा दिखाते हुए बोला- "क्यों फेंक दूं और यह  कोई unlucky नही है, मेरी गलती हो जाती है
 इसलिए फालतू बात तुम हमसे मत किया करो।"


निषी उसको प्यार से समझाते हुए "अच्छा ठीक है सॉरी मत फेंको, लेकिन हो तो कुछ ऐसा ही रहा है। जब जब  हाथ में हुई है घड़ी तुम घर नहीं जा पाये हो।"
प्रतीक कहता है- "कि इस बार जा तो रहा हूं घर अब कैसे भी जा रहा हूं बस जा तो रहा हूं।"
निषी मुस्कुराते हुए कहती है- थी लेकिन ट्रेन से तो नहीं जा रहे हो।
दोनो मुस्करा देते है।


प्रतीक धीरे-धीरे हाईवे पहुंचकर एक गाड़ी से लिफ्ट लेकर कैसे भी 12:00 बजे रात को घर पहुंच जाता है।
कुछ दिन यूं ही घर में बिताने के बाद अतीक वापस आने के लिए तैयार होता है।


मां पापा से आशीर्वाद और छोटी बहन के साथ स्कूटी पर  पीछे बैठकर प्रतीक स्टेशन चलाता है। इतने दिनों बाद निषी से मिलूंगा।
प्रतीक देखता है कि ट्रेन सामने ही खड़ी है कि लेकिन न जाने क्या होता है प्रतीक एंक्वायरी काउंटर पर जाकर चेक करता है कोई  सुपर फास्ट ट्रेन तो नहीं है।
ट्रेन से पीठ पीछे मुड़कर कुछ सोचने लगता है। प्रतीक किस सोच में डूब जाता की ट्रेन का हॉर्न तक नही सुनाई देता है।
प्रतीक पलट कर देखता है तो ट्रैन station से निकल रही है प्रतीक दौड़ कर पकड़ने की कोशिश करता है लेकिन ट्रैन निकल जाती है,  इस बार ट्रेन छूट गई। प्रतीक ने ध्यान दिया इस बार कलाई में वह घड़ी नहीं थी वह घर पर छूट गई। इस बार प्रतीक ने कुछ सोचा और घर वापस चला गया।


अगले दिन सुबह घड़ी पहन कर आया तो ट्रेन टाइम से थी और बिल्कुल समय से कानपुर पहुंचा दिया।


कानपुर पहुंचकर प्रतीक ने निषी को ये किस्सा बताया तो निषी ने मुस्कुराते हुए कहा- "मैंने तो कहा ही था मेरी घड़ी तुमको कानपुर से जाने नहीं देती है या मुझसे दूर नहीं जाने देती है और उस घड़ी के बिना तो मेरे पास नहीं आ सकते।"

प्रतीक मुस्कराते हुए कहता है-" घड़ी में कुछ तो बात है।"

प्रतीक घड़ी को देख मुस्कुराता फिर निषी को देख कर और कुछ नहीं बोला बस उसको देख तो कभी घड़ी को तो कभी निषी के चेहरे को और निषी को कश के hug कर लेता है "कभी मुझसे दूर नहीं जाना तुम।"


प्रतीक कानपुर से कहीं भी जाता तो ट्रेन हमेशा लेट होती उसकी घड़ी उसकी कलाई में होती।
निषी ने ना जाने कितनी बार कहा कि वह घड़ी उतार दो लेकिन प्रतीक ने उस घड़ी को कभी नही उतारा।
अब ओर दूसरी घड़ियां प्रतीक को पसंद ही नहीं आती।

1 december 2020
प्रतीक आज कानपुर से घर जा रहा है।  ट्रैन आज भी लेट है क्योंकि कलाई में आज भी वो ही घड़ी है।
विंडो सीट पर बैठ कर यही सोच रहा है।
अब दूर है ज्यादा नही मिलते है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव इस रास्ते न जाने क्या-क्या आ गया मुलाकाते कम हो गई है बातें भी कम हो गई है 

लेकिन प्रतीक की कलाई में उसकी घड़ी अब हमेशा होती है। लेकिन घड़ी से एक अलग बात हुई की घड़ी पहन के जब भी प्रतीक किसी एग्जाम में गया या किसी इंटरव्यू में गया है या practicle देने गया अपने कॉलेज के वह घड़ी हमेशा उल्टी साबित हुई है जो खड़ी प्रतीक की ट्रेन लेट करा देती थी, उसे कानपुर से दूर नहीं जाने देती थी वह प्रतीक के एग्जाम ओर प्रैक्टिकल में इंटरव्यू में अच्छे नंबर से पास करा देती थी।

निषी की घड़ी अब पुरानी हो गई है लेकिन आज भी प्रतीक की कलाई में रहती है। 

प्रतीक की  ट्रेन के लिए ये घड़ी हमेशा unlucky रहती है। मालूम नहीं लेकिन जो भी हो हमेशा निषी दूर होकर भी प्रतीक के साथ और करीब होने का एहसास कराती रहती है।

ये किस्सा जब वो घड़ी सुनेगी तो निषी से यही कहेगी की
उसकी कलाई पर
मेरा होना तुमने मुकम्मल कर दिया...
मेरी टिक टिक को तूने उसकी धड़कन कर दिया।।


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