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KAHANI - LOVE IN TRAIN- 3 (मोहब्बत का सफर)


Love in train (part-2)

                   

"अरे तुम्हारी आँख में आँसू , तुम रोती भी हो प्रतीक निषी को देखते बोला।
तभी प्लेटफार्म की लाइट एकदम से बंद हो जाती है, निषी पलट कर प्रतीक से चिपक गयी। प्रतीक इस अचानक मिलन से चौक गया, लेकिन उसके उदास मन और डरे हुए चेहरे को देख कुछ नही बोल पाया, पहली बार कोई लड़की उसके इतने करीब थी इसीलिए सोच ही नही पाया कि क्या करे। 

प्रतीक ने महसूस किया उसकी धड़कन निषी की धड़कन की आगे बन्द हो चुकी है और निषी का दिल डर से इतनी तेज़ धड़क रहा था, कि वो उसे अपने सीने में महसूस कर सकता था ।
तभी खुद को संभालते हुए निषी के सर पर हाथ रखते हुये प्यार से उसके कान में बोला- "डरो मत में हूँ ना, अच्छा अब घर फ़ोन लगा दो और बता दो मे प्रॉब्लम में हूँ।"

तभी लाइट आ जाती है निषी खुद को प्रतीक के साथ से देख खुद एकदम से अलग करती है। उसकी आँखे में उसका शरमाना प्रतीक साफ साफ दिख रहा होता है, फिर वो अपना फ़ोन देखती है लेकिन फ़ोन उसके पास नही होता है।
"फ़ोन ट्रेन में ही है, क्या करूँ? अब में इस अंजान जगह रात के 12 बजे किसी दानापुर स्टेशन पर हूँ, हद होती है यार।" निषी चिल्लाते हुए बोली ।
प्रतीक ने कहा-"अच्छा मेरे से कर लो फ़ोन।"
निषी थोड़ा डरते हुए बोली-"मै घर से भाग कर आयी हूँ फोन नही कर सकती हूँ।"

"क्या! क्या बोल रही हो तुम भाग कर आयी हो क्यों लेकिन ?" प्रतीक ने परेशान होते हुए पूछा।
निषी ने कहा-"बाद में बताऊँगी अभी कुछ करो ना तुम्हारे पास तो पैसे होंगे ?"
"नहीँ यार जल्दी जल्दी मे पर्स ट्रेन में ही रह गया" प्रतीक परेशान होते हुए बोला।
"अब कैसे क्या होगा, मै क्या करुँगी? घर में सब परेशान हो जाएंगे।" निषी बड़बड़ाती रही। 

तभी प्रतीक किसी से फोन पर बात करता है "हेलो पापा एक हेल्प कर दीजिये।" प्रतीक पापा से बात करते हुए बोला। फ़ोन के उस तरफ से पापा बोले "आखिर आ गयी हमारी याद बताओ क्या मदद करे ।"
सुन कर प्रतीक को गुस्सा तो बहुत आया, दिल किया की फ़ोन रख दे लेकिन निषी को परेशान देख बोला-"एक कार चाहिए दानापुर स्टेशन पर में लोकेशन सेंड कर देता हूँ।"
इतना बोल कर फोन रख दिया।

"तुम्हारे पापा क्या कर लेंगे यहाँ ? वो तो इतनी दूर है।" निषी ने सोचते हुए कहा।
प्रतीक मुस्कराया और कहा-"बाहर चलो अलगे स्टेशन पर ट्रेन भी पकड़नी है।"
निषी-"कैसे, हम इतनी जल्दी कैसे पहुँचेगे ?"
दोनों बाहर आने लगे तभी निषी ने धीरे से अपना हाथ प्रतीक के हाथ में थमा दिया। प्रतीक ने एक पहले दोनों हाथों की और देखा फिर निषी की ओर चुपचाप उसका हाथ पकड़ कर चल दिया।

निषी बिना उसकी तरफ देख बोली- "हल्का सा डर लग रहा है हमको इसीलिए पकड़ लिया है।" 
प्रतीक फिर मुस्कराया। 
दोनों एक बेंच पर बैठ गए देखा निषी को कम कपड़ो की वजह से ठंड लग रही है, प्रतीक ने आसपास आग की उम्मीद से देखा लेकिन सन्नाटे के अलावा वहाँ कुछ नही था तो अपनी जैकेट उतर कर निषी को पहना दी। 
निषी ने जैकेट को कस कर पहन लिया जब थोड़ी गरमाहट लगी तो प्रतीक की तरफ देखा तो अब उसे ठंड लगने लगी। निषी प्रतीक के करीब बिलकुल करीब आकर बैठ गयी, निषी को फिर इतने करीब देख प्रतीक फिर शरमा गया।
लेकिन जब निषी की आँखों में देखा तो दोनों ने आँखों ही आँखों मे हज़ारो बाते कर ली। और फिर एक बार फिर एक दूसरे उतने ही करीब आ गये, ठंड शायद दोनों के होठों के मिलन से गायब होने को तैयार थी...लेकिन तभी सामने दो स्पोर्ट कार आ गयी। कार की तेज रोशनी से एकदम से दोनों अलग हुए।

"तुम पीछे वाली गाड़ी में आओ, ये गाड़ी हम चलायेंगे।"
प्रतीक ने निषी के लिए दरवाजा खोला निषी के मन में हज़ारो सवाल आये उसने पूछने की कोशिश की तो प्रतीक बोला-"अभी कुछ नही ट्रेन पकड़ ले पहले और ये ड्राइव एन्जॉय करो बस।"
निषी ने हाँ में सर हिला दिया।
"और तुम लोग सीधे बेगूसराय स्टेशन पर मिलना" प्रतीक ने दूसरी कार में बैठे ड्राइवर को आदेश दिया, और गाड़ी स्टार्ट कर चल दिया कुछ ही देर गाडी हवा से बाते करने लगी। निषी सब भूल कर बस एन्जॉय कर रही थी और चिल्लाये जा रही थी-"और तेज़ और तेज़।"

जिस सफर को ट्रेन से 2 घण्टे लगते है, उसे प्रतीक ने 2 घण्टे से कम समय में खत्म कर दिया दोनों बेगूसराय
स्टेशन पर पहुँज चुके थे देखा ट्रेन पहले से ही वहाँ खड़ी थी दोनों तुरन्त भागे और जल्दी से ट्रेन में चढ़ गए जब कैबिन पहुँचे तो थकान के कारण दोनों सीट पर धम से बैठ गए ।
सुबह के चार बज रहे थे और दोनों एक दूसरे को देख मुस्करा रहे थे लेकिन थकान के कारण कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला ।
अब सुबह के 7 बज रहे है सूरज की मीठी सी किरण खिड़की से सीधे प्रतीक के चेहरे पर लग रही है ।.....
                                               ....To be continued.....
                               Happy rose day all of u 🥀
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